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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार] [३२३ संसारी जीवों के ज्ञानावरण-दर्शनावरण कर्म का उदय प्रबल है जिसके कारण जीव अज्ञान को प्राप्त हो रहे हैं। मोहनीय कर्म के उदय से रागी, द्वेषी, कामी, क्रोधी, लोभी, मानी, कपटी हो रहे हैं; भयवान, शोकवान, ग्लानिवान, रति के वश, अरति के वशीभूत होकर अनेक विकाररुप कुचेष्टा कर रहे हैं। ___ जैसे कोई मदिरा पीकर परवश होकर अपने को भूल जाता है; धतूरा खाकर उन्मत्त हुआ परवश होकर अपने को भूलकर निंद्य चेष्टा करने लगता है; उसी प्रकार संसारी जीव विषय-कषायों के वश होकर निंद्य चेष्टा करता है। इनपर तो करुणा करना चाहिये,दोषों से छुड़ाना चाहिये; निन्दा अपवाद कैसे करे ? पर का अपवाद करके अनेक निंद्य पर्यायों में दुर्गतियों में तिरस्कार ही पाया है। सम्यग्दृष्टि तो नित्य ही ऐसी प्रार्थना करता है: दूसरों के दोष कहने में मेरा मौन बना रहे. सभी जीवों के प्रति मेरे प्रिय हितरुप वचन ही निकलें। जिनधर्मी तो गुणग्राही ही होते हैं; वे मिथ्यादृष्टियों के, तीव्र कषायी जीवों के मिथ्या आचरण देखकर बैर बुद्धि से निंदा नहीं करतें हैं। उनके ऐसा अभिप्राय नहीं रहता हैं कि इसका अपवाद हो जाय तो अच्छा है। वे तो दोषों को, मिथ्यात्व को अनंतकाल तक दुःखो का देनेवाला जानकर करुणाबुद्धि से मंद कषायी जीवों को गुण-दोषों की हानि-वृद्धि का स्वरुप दिखलाते हैं। निद्रा त्याग : निद्रा, आलस, प्रमाद पर विजय प्राप्त करो। निद्रा समस्त धर्म का अभाव करती है। जिसने निद्रा को नहीं जीता, उसके छह आवश्यक, स्वाध्याय, ध्यान, जाप सभी उत्तम कार्य नष्ट हो जाते हैं। मुनियों के तो तप ही निद्रा को जीतने के लिये हैं। दर्शनावरण कर्म के उदयजनित निद्रा सर्वधाती प्रकृत्ति है, आत्मा को अचेतन जैसा कर देती है। जिसने निद्रा को नहीं जीता उसके सभी हितरुप कार्य नष्ट हो जायेंगे। शास्त्र पढ़ते समय या शास्त्र सुनते समय यदि निद्रा आ जायगी, ऊंघ आ जायगी तो शास्त्र पढ़ना, सुनना नहीं होगा, किन्तु शास्त्र पढ़ने-सुनने में अरुचि हो जायगी। ध्यान, सामायिक करते समय यदि निद्रा आ जायगी तो ध्यान, जाप, सामायिक , आत्मध्यान, भावना सभी नष्ट हो जायेंगे। नींद में जीव एकेन्द्रिय के समान हो जाता है। निद्रा समस्त ज्ञान को नष्ट कर देती है। निद्रा के समय में अबुद्धिपूर्वक आत्मा में अनेक विकल्प उत्पन्न होते हैं। बुद्धिपूर्वक आत्मा का हित करने की भावना का अभाव हो जाता है। दिन में निद्रा लेने से दर्शनावरण कर्म का आस्त्रव होता है। मुनिराज तो एक प्रहर रात्रि चले जाने के बाद खेद प्रमादादि दूर करने के लिये रात्रि के मध्यम दो प्रहरों में शयन करते हैं, थोड़ी सी निद्रा लेकर फिर जागृत होकर बारह भावनाओं का चिन्तवन करते हैं, फिर क्षणभर को निद्रा आ जाती है, फिर जाग्रत होकर धर्मध्यान में लीन हो जाते हैं। इस प्रकार बीच के दो प्रहरों में भी अनेक बार जागृत होकर धर्मध्यान करते रहते हैं। यदि कभी मुहूर्त भर को भी निद्रा में अचेत हो जाते हैं तो निद्रा को जीतने के लिये एक उपवास, दो उपवास, तीन, चार, पाँच इत्यादि उपवास Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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