________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
[३१३
कहते हैं। इस प्रकार अनेक दोषों के नाम भी कहे हैं। ऐसा जानकर मन-वचन-काय से अनुराग पूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत पालो। ब्रह्मचर्य सहित होने पर ही संसार के पार जाओगे।
ब्रह्मचर्य बिना व्रत-तप समस्त निस्सार है। ब्रह्मचर्य बिना सकल कायक्लेश निष्फल है। ब्राह्य स्पर्शन इंद्रिय के सुख से विरक्त होकर, अंतरंग अपना परमात्म स्वरुप जो आत्मा है उसकी उज्ज्वलता देखो। जैसे भी अपना आत्मा काम के राग से मलिन नहीं हो, वैसे ही यत्न करो। ब्रह्मचर्य से दोनों लोक भूषित हो जाते हैं।
यदि शील की रक्षा चाहते हो, उज्ज्वल यश चाहते हो, धर्म चाहते है, अपनी प्रतिष्ठा चाहते हो तो चित्त में परमागम की शिक्षा इस प्रकार धारण करो- स्त्रियों की कथा नहीं सुनो, नहीं कहो, स्त्रियों के रागरंग-कौतूहल नाटक-दृश्य नहीं देखो। ये मेला, सिनेमा
म बिगाड़ते हैं। व्यभिचारी पुरुषों की संगति का त्याग करना; भांग, तम्बाखू, जरदा, मादक वस्तु भक्षण नहीं करना; ताम्बूल, पुष्पमाला, इत्र, फुलेलादि शीलभंग-व्रतभंग के कारणों को दूर से ही टालो।
गीत-नृत्यादि कामोद्दीपन के कारणों का परिहार करो, रात्रि भोजन छोड़ो, विकार करने के कारण लोक विरुद्ध वस्त्र- आभरण नहीं पहनो, एकान्त में किसी भी स्त्री मात्र का संसर्ग नहीं करो। रसना इंन्द्रिय की लम्पटता छोड़ो, जिह्मा इंन्द्रिय की लम्पटता के साथ हजारों दोष आ जाते हैं, इसी से समस्त उच्चता, यश, धर्म नष्ट हो जाता है; समता भाव को तो वह स्वप्न में भी नहीं याद करता है; लोक व्यवहार भ्रष्ट हो जाता है; ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है। अतः जो आत्मा के हित का इच्छुक हो वह एक ब्रह्मचर्य की ही रक्षा करे। इस प्रकार ब्रह्मचर्य धर्म का वर्णन किया ।१०।।
इस प्रकार ये धर्म के दश लक्षण सर्वज्ञ भगवान ने कहे हैं। जिसके ये दश चिह्न प्रकट होते हैं, उसके धर्म है ऐसा जानना। उत्तम क्षमादि धर्मों के घातक- बैरी क्रोधादि हैं, उनसे अनेक दोष उत्पन्न हो जाते है, अतः उन्हें दूर करो तथा क्षमादि में अनेकगुण हैं, उनकी भावना बारम्बार भावो।
क्षमाधर्म : जो क्षमा है वह अपने ही प्राणों की रक्षा है, धन की रक्षा है, यश की रक्षा है, धर्म
सा है। व्रत शील. संयम सत्य की रक्षा एक क्षमा से ही होती है। कलह के घोर द:खों से अपनी रक्षा एक क्षमा ही करती है। समस्त उपद्रव तथा बैर से क्षमा ही रक्षा करती है।
क्रोध है वह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का मूल से ही नाश करने वाला है। क्रोधी अपने ही प्राणों का नाश करता है। क्रोध से प्रचण्ड रौद्रध्यान प्रकट होता है। क्रोधी एक क्षण मात्र में आत्म-घात करके मर जाता है। कए में. बावडी में, तालाब में, नदी में, समुद्र में डूबकर मर जाता है। शस्त्रघात, विषभक्षण, झंपापातादि ( झंझावातादि) अनेक कुकर्म करके आत्मघात कर लेता है। क्रोधी में अन्य को मारने की दया नहीं होती है। वह अपने पिता को, पुत्र को, भाई को, मित्र को, स्वामी को, सेवक को, गुरु को एक क्षण मात्र में मार डालता है। क्रोधी घोर नरक का पात्र है।
क्रोधी महाभयंकर है, समस्त धर्म का नाश करनेवाला है। क्रोधी के सत्य वचन नहीं होता हैं; वह तो अपने को, पर को, समभाव को, धर्म को जला देनेवाला, कुवचनरुप अग्नि को ही उगलता
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com