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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार [२८९ उत्तम क्षमा धर्म अब उत्तमक्षमा गुण के स्वरूप का वर्णन करते हैं। क्रोध बैरी का जीतना वही उत्तमक्षमा है। कैसे है क्रोध बैरी ? इस जीव के निवास स्थान जो संयमभाव, सन्तोषभाव, निराकुलता भाव, सम्यग्दर्शन आदि रत्नों का भण्डार उन्हें जलाने के लिये अग्नि के समान है। यश का नाश कर देता है, अपयशरूप कालिमा को बढ़ाया है, धर्म-अधर्म का विचार नष्ट कर देता है। क्रोधी के मन-वचन-काय अपने वश में नहीं रहते हैं। बहुत दिनों की प्रीति को क्षणमात्र में बिगाड़कर महान बैर उत्पन्न कर देता है। जो क्रोधरूप राक्षस के वश में हो जाता है वह असत्य वचन, लोक निंद्य वचन, भील चाण्डालादि के योग्य वचन बोलने लगता है। क्रोधी समस्त धर्म का लोप कर देता है। क्रोधी होकर पिता को मार डालता है; माता को, पुत्र को, स्त्री को, बालक को, स्वामी को, सेवक को, मित्र को भी प्राण रहित कर देता है। तीव्र क्रोधी तो विष से, शस्त्र से, स्वयं का ही घात कर लेता है; ऊँचे मकान से, पर्वतादि से गिरकर, कुए में कूद कर मर जाता है। क्रोधी की किसी प्रकार प्रतीति नहीं करना। क्रोधी तो यमराज तुल्य है। क्रोधी पहले तो अपने ज्ञान, दर्शन, क्षमादि गुणों का घात करता है; पश्चात् कर्म के वश से अन्य का घात हो या न हो। क्रोध के प्रभाव से महातपस्वी दिगम्बर मुनि भी धर्म से भ्रष्ट होकर नरक गये हैं। क्रोध दोनों लोकों का नाश करनेवाला है, महापाप बंध कराकर नरक पहुँचाता है, बुद्धि भ्रष्ट करता है. निर्दयी बना देता है. दसरों के द्वारा किये गये उपकार को भला कर कतघ्नी बना देता है। अतः क्रोध के समान पाप अन्य नहीं है। इस लोक में क्रोधादि कषायों के समान अपना घात करनेवाला दसरा नहीं है। जो लोक में पुण्यवान हैं. महा भाग्यवान हैं. जिनके दोनों लोक सुधरना है उन्हीं के क्षमा गुण प्रकट होता है। क्षमा अर्थात् पृथ्वी, उसके समान सहने का स्वभाव होना वह क्षमा है। अपने सम्यक् स्वरूप को, हित-अहित को समझकर, असमर्थों द्वारा किये हुये उपद्रवों को आप समर्थ होकर भी राग-द्वेष रहित होकर सहना, विकारी नहीं होना उसे उत्तमक्षमा कहते हैं। यहाँ उत्तम शब्द सम्यग्दर्शन सहित होने के लिये कहा है। उत्तमक्षमा तीनलोक में सार है। उत्तमक्षमा संसार समुद्र से तारनेवाली है, रत्नत्रय को धारण करानेवाली है, दुर्गति के दुःखों को हरनेवाली है। जिसके उत्तमक्षमा होती है, उसका नरक-तिर्यंच दोनों गतियों में गमन नहीं होता है। उत्तमक्षमा के साथ अनेक गुणों का समूह प्रकट होता है। मुनिराजों को तो अति प्यारी उत्तमक्षमा ही है। उत्तम क्षमा की प्राप्ति को ज्ञानीजन तो चिन्तामणि रत्न की प्राप्ति के समान लाभ मानते हैं। उत्तमक्षमा ही मन की उज्ज्वलता करती है। क्षमागुण के बिना मन की उज्ज्वलता तथा स्थिरता कभी नहीं होती है। वांछित अभिप्राय की सिद्धि करनेवाली एक उत्तमक्षमा ही है। क्रोध को जीतने का उपाय : क्रोध को जीतने की विधि इस प्रकार है – कोई आप को दुर्वचनादि कहकर दुःखी करे, गाली दे, चोर कहे, अन्यायी, पापी, दुराचारी, दुष्ट, नीच, दोगला, चाण्डाल, Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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