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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार] [२८३ करने के लिये कायोत्सर्ग करना वह स्थापना कायोत्सर्ग है। सदोष द्रव्यों के सेवन से तथा सदोष क्षेत्र, काल के सेवन से - संयोग से उत्पन्न दोष दूर करने के लिये कायोत्सर्ग करना वह द्रव्य, क्षेत्र, काल कायोत्सर्ग है। मिथ्यात्व , असंयम आदि भावों द्वारा किये दोष दूर करने को कायोत्सर्ग करना वह भाव कायोत्सर्ग है। इस प्रकार कायोत्सर्ग के छह भेदों का वर्णन किया। गृहस्थ के और भी छह प्रकार के आवश्यक है : भगवान जिनेन्द्र का नित्य पूजन, निर्ग्रन्थ गुरु की सेवा, स्तवन, चिन्तवन नित्य करना, जिनेन्द्र के कहे आगम का नित्य स्वाध्याय करना, इन्द्रियों को विषयों से रोकना, छह काय के जीवों की दयारूप संयम पालना, शक्ति प्रमाण नित्य तप करना, तथा शक्ति प्रमाण नित्य दान करना, ये छह प्रकार के भी आवश्यक गृहस्थ को नित्य नियम से अंगीकार करने योग्य हैं। ___इस प्रकार समस्त पापों का नाश करने वाली, भावों को उज्ज्वल करनेवाली आवश्यकों की हानि के अभावरूप चौदहवीं भावना का वर्णन किया ।१४। सन्मार्ग प्रभावना भावना ___ अब सन्मार्ग प्रभावना नाम की पन्द्रहवीं भावना का वर्णन करते हैं। यहाँ सन्मार्ग जो मोक्ष का सत्यार्थ मार्ग उसका प्रभाव प्रकट करना वह सन्मार्ग प्रभावना है। वह सन्मार्ग रत्नत्रय है, रत्नत्रय आत्मा का स्वभाव है; उसे मिथ्यात्व, राग, द्वेष, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ ने अनादि से मलिन–विपरीत कर रखा है। अब परमागम की शरण लेकर मुझे मिथ्यात्वादि दोषों को दूर करके रत्नत्रय स्वभाव को उज्ज्वल करना है। यह मनुष्य जन्म, इंद्रियों की पूर्णता, ज्ञानशक्ति, परमागम की शरण, साधर्मियों का समागम, रोग रहित अवस्था, क्लेशरहित जीविका, इत्यादि पुण्यरूप सामग्री प्राप्त करके भी आत्मा को मिथ्यात्व, कषाय, विषयों से नहीं छुड़ाया तो अनन्तानन्त दुःखों से भरे संसार समुद्र से मेरा निकलना अनन्तकाल में भी नहीं होगा। जो सामग्री आज मिली है वह अनन्तकाल में भी मिलना अति दुर्लभ है। अंतरंग-बहिरंग सकल सामग्री पाकर भी यदि आत्मा का प्रभाव प्रकट नहीं करूँगा तो काल अचानक आकर समस्त संयोग नष्ट कर देगा। इसलिये अब मुझे रागद्वेष दूर करके जैसे मेरा शुद्ध वीतराग स्वरूप अनुभवगोचर हो उस प्रकार ध्यान स्वाध्याय में तत्पर होना है। बाह्य प्रवृत्ति भी मुझे उज्ज्वल करके अंतरंग धर्म का प्रभाव प्रकट करके मार्ग प्रभावना ऐसी करना है जिसे देखकर अनेक जीवों के हृदय में धर्म की महिमा प्रवेश कर जाये। जिनेन्द्र के अभिषेक का उत्सव ऐसा करना जिसे देखकर हजारों लोगों के भाव जिनेन्द्र के जन्म कल्याण के समय जिस प्रकार इन्द्रादि देवों ने अभिषेक करके अपना जन्म सफल किया उसी प्रकार जय-जयकार शब्दों द्वारा हमारे स्तवन के उच्चारण से लोग अपने को कृतार्थ मानकर तन-मन से प्रफुल्लित हो जायें – इस प्रकार से अभिषेक द्वारा प्रभावना करना। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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