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________________ व Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २८२] [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार स्थापना स्तवन है। समोशरण में स्थित अर्हन्तों की देह, प्रभा, प्रातिहार्य आदि सहित का स्तवन वह द्रव्य स्तवन है। कैलाश, सम्मेदाचल, ऊर्जयन्त (गिरनार) पावापुर, चंपापुर, आदि निर्वाण क्षेत्रों का तथा समोशरण में धर्मोपदेश के क्षेत्र का स्तवन वह क्षेत्र स्तवन है। गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण कल्याण के काल का स्तवन वह काल स्तवन है। केवलज्ञान आदि अनंत चतुष्टय भावों का स्तवन वह भाव स्तवन है। इस प्रकार स्तवन के छह भेद कहे हैं। वंदना के छह भेद: तीर्थंकर व सिद्ध तथा आचार्य उपाध्याय साध इनमें एक-एक का नाम उच्चारण करके वंदना करना वह नाम वंदना है। अरहन्त सिद्ध आदि में एक-एक के प्रतिबिम्ब आदि की वंदना करना वह स्थापना वंदना है। अर्हन्तादि में उनके शरीर की वंदना करना वह द्रव्य वंदना है। अर्हन्तादि से व्याप्त क्षेत्र की वंदना करना वह क्षेत्र वंदना है। अर्हन्तादि में किसी एक से व्याप्त काल की वंदना करना वह काल वंदना है। तीर्थंकर के, सिद्ध के, आचार्य के, उपाध्याय के, साधु के आत्मा के गुणों की वंदना करना वह भाव वंदना है। इस प्रकार वंदना के छह भेद कहे हैं। प्रतिक्रमण के छह भेद : नाम के अयोग्य उच्चारण में कृत, कारित , अनुमोदनारूप मनवचन-काय से उत्पन्न दोष का निवारण करने के लिये प्रतिक्रमण करना वह नाम प्रतिक्रमण है। किसी शुभ-अशुभ स्थापना के निमित्त से मन-वचन-काय से उत्पन्न दोष से आत्मा को निवृत्त करना वह स्थापना प्रतिक्रमण है। आहार, पुस्तक, औषधि आदि के निमित्त से मनवचन-काय से उत्पन्न दोष के निराकरण के लिये प्रतिक्रमण करना वह द्रव्य प्रतिक्रमण है। किसी क्षेत्र में गमन, स्थापना आदि के निमित्त से उत्पन्न अशुभ परिणाम जनित दोषों के निराकरण के लिये प्रतिक्रमण करना वह क्षेत्र प्रतिक्रमण है। दिन, रात्रि, पक्ष, ऋतु, शीत, उष्ण, वर्षा काल के निमित्त से उत्पन्न अतिचार को दूर करने के लिये प्रतिक्रमण करना वह काल प्रतिक्रमण है। रागद्वेष आदि भावों से उत्पन्न दोष को दूर करने के लिये प्रतिक्रमण करना वह भाव प्रतिक्रमण है। इस प्रकार प्रतिक्रमण के छह भेद कहे हैं। प्रत्याख्यान के छह भेद : अयोग्य पाप के कारण जो नाम हैं उनके उच्चारण करने का त्याग कर देना वह नाम प्रत्याख्यान है। अयोग्य मिथ्यात्वादि में प्रवर्तन करानेवाली स्थापना करने का त्याग करना वह स्थापना प्रत्याख्यान है। पापबंध के कारण सदोष द्रव्य व तप के निमित्त निर्दोष द्रव्य का भी मन-वचन-काय से त्याग कर देना वह द्रव्य प्रत असंयम का कारण क्षेत्र का त्याग कर देना वह क्षेत्र प्रत्याख्यान है। असंयम का कारण काल का त्याग कर देना वह काल प्रत्याख्यान है। मिथ्यात्व, असंयम, कषायादि का त्याग करना वह भाव प्रत्याख्यान है। इस प्रकार प्रत्याख्यान के छह भेद कहे हैं। ___कायोत्सर्ग के छह भेद : पाप के कारण कठोर कटुक नामादि से उत्पन्न दोष को दूर करने के लिये कायोत्सर्ग करना वह नाम कायोत्सर्ग है। पापरूप स्थापना के द्वारा आये अतिचार को दूर Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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