SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार] [२८१ नहीं है, उसका विचार भी अवश्य करने योग्य है। आज मेरा परमेष्ठी के पूजन में, स्तवन में कितना समय गया। स्वाध्याय में, पंच परमगुरु की जाप में, शास्त्र श्रवण में, तत्त्वार्थ की चर्चा में, धर्मात्मा की वैयावृत्य में कितना समय गया ? घर के आरंभ में कषाय में, विकथा करने में, विसंवाद में, भोजनादि में, इंद्रियों के विषयों में, प्रमाद में, निद्रा में, शरीर के संस्कार नादि पाँच पापों में कितना काल गया ? इस प्रकार विचारकर पाप में बहुत प्रवृत्ति हई हो तो अपने को धिक्कार देकर पाप बंध के कारणों को घटाकर, धर्म कार्य में आत्मा को युक्त करना योग्य है। पंचम काल में प्रतिक्रमण ही परमागम में धर्म कहा है। आत्मा के हितअहित के विचार में निरन्तर उद्यमी रहना योग्य है। यह प्रतिक्रमण आत्मा की बड़ी सावधानी करने वाला तथा पूर्व में किये पापों की निर्जरा करनेवाला है।४। प्रत्याख्यान : आगामी काल में पाप का आस्त्रव रोकने के लिये पापों का त्याग करना कि मैं भविष्य में ऐसा पाप मन-वचन-काय से नहीं करूँगा, वह प्रत्याख्यान नाम का आवश्यक है, जो सुगति का कारण है।५।। कायोत्सर्ग : चार अंगुल के अंतर से दोनों पैर बराबर कर खड़े होकर, दोनों हाथों को नीचे की ओर लम्बे लटकाकर, देह से ममता छोड़कर, नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर , देह से भिन्न शुद्ध आत्मा की भावना करना कायोत्सर्ग है। निश्चल पद्मासन से भी तथा खड़े होकर भी कायोत्सर्ग किया जा सकता है, दोनों की अवस्थाओं में शुद्ध ध्यान के अवलंबन से ही सफल कायोत्सर्ग होता है।६। ये छह आवश्यक परम धर्मरूप हैं। इनकी पूजा करके पुष्पों की अंजुलि क्षेपना, अर्घ उतारण करना योग्य है। इन छह आवश्यकों के परमागम में छह-छह भेद कहें हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य , क्षेत्र, काल , भाव - ये छह प्रकार से जानना। सामायिक के छह भेद : शुभ-अशुभ नाम को सुनकर रागद्वेष नहीं करना वह नाम सामायिक है। कोई स्थापना प्रमाण आदि से सुन्दर है, कोई प्रमाणादि से हीनाधिक होने के कारण असुंदर है, उनमें रागद्वेष का अभाव वह स्थापना सामायिक है। सोना, चाँदी, रत्न, मोती, इत्यादि तथा मिट्टी, लकड़ी, पत्थर, कांटे, छार, राख, धूल इत्यादि में राग-द्वेष रहित सम देखना वह द्रव्य सामायिक है। महल-उपवनादि रमणीक, श्मशानादि अरमणीक क्षेत्र में राग-द्वेष नहीं करना वह क्षेत्र सामायिक है। हिम, शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा , शरद ऋतुओं तथा रात्रि, दिन, शुक्लपक्ष , कृष्णपक्ष इत्यादि काल में रागद्वेष नहीं करना वह काल सामायिक है। सभी जीवों को दुःख नहीं हो ऐसा मैत्री भाव करते हुए अशुभ परिणामों का अभाव करना वह भाव सामायिक है। इस प्रकार सामायिक के छह भेद कहे हैं। स्तवन के छह भेद : चौबीस तीर्थंकरों का अर्थ सहित एक हजार आठ नामों द्वारा स्तवन करना वह नाम स्तवन है। तीर्थंकरों के - अर्हन्तों के अनेक कृत्रिम-अकृत्रिम प्रतिबिम्बों का स्तवन वह Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy