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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार
[२६९ बहुश्रुतभक्ति भावना अब बहुश्रुत भक्ति नाम की बारहवीं भावना का वर्णन करते हैं। जो अंग-पूर्व आदि के ज्ञाता हैं, चारों अनुयोग के पारगामी होकर निरन्तर स्वयं परमागम को पढ़ते हैं, अन्य शिष्यों को पढ़ाते हैं, वे बहुश्रुती हैं। श्रुतज्ञान ही जिनके दिव्य नेत्र हैं, अपना तथा पर का हित करने में ही प्रवर्तते हैं, अपने जिन-सिद्धांतो तथा अन्य एकान्तियों के सिद्धांतों को विस्तार से जानने वाले, स्याद्वादरूप परम विद्या के धारक हैं, उनकी भक्ति करना वह बहुश्रुतभक्ति है। बहुश्रुती की महिमा कहने को कौन समर्थ है ? जो निरन्तर श्रुतज्ञान का दान करते हों ऐसे उपाध्यायों की जो विनय सहित भक्ति करते हैं वे शास्त्ररूप समुद्र के पारगामी हो जाते हैं। जितने भी अंग , पूर्व, प्रकीर्णक जिनेन्द्रदेव ने कहे हैं उन समस्त जिनागमों को जो निरंतर स्वयं पढ़ते हैं तथा अन्य को पढ़ाते हैं, वे बहुश्रुती हैं।
द्वादशांग : प्रथम आचारांग के अठारह हजार १८,००० पदों में मुनिधर्म का वर्णन है ।१।
सूत्रकृतांग के छत्तीस हजार ३६,००० पदों में जिनेन्द्र के श्रुत के आराधन करने की विनयक्रिया का वर्णन है ।२।
स्थानांग के बियालीस हजार ४२,००० पदों में छ: द्रव्यों के एक-अनेक स्थानों का वर्णन है।।
समवायांग के एक लाख चौंसठ हजार १,६४,००० पदों में जीवादि पदार्थों का द्रव्य , क्षेत्र, काल, भाव की समानता की अपेक्षा से वर्णन है।४।
व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग के दो लाख अट्ठाईस हजार २,२८,००० पदों में जीव अस्ति है या नास्ति है, एक है या अनेक है इत्यादि गणधर द्वारा तीर्थंकर के निकट किये गये साठ हजार प्रश्नों का वर्णन है।५।।
ज्ञातृधर्मकथा अंग के पाँच लाख छप्पन हजार ५,५६,००० पदों में गणधर द्वारा किये प्रश्नों के उत्तररूप जीवादि द्रव्यों के स्वभाव का वर्णन है।६।
उपासकाध्ययनांग के ग्यारह लाख सत्तर हजार ११,७०,००० पदों में श्रावक के (ग्यारह प्रतिमा) व्रत, शील, आचार, क्रिया, मंत्रादि का वर्णन है।७।
__ अंतकृतदशांग के तेईस लाख अट्ठाईस हजार २३,२८,००० पदों में एक-एक तीर्थंकर के तीर्थकाल में दश–दश मुनि उपसर्ग सहित होकर संसार का अन्त करके निर्वाण प्राप्त किया, उनका वर्णन है ।८।
अनुत्तरोपपाद दशांग के बानवै लाख चबालीस हजार ९२,४४,००० पदों में एक-एक तीर्थंकर के तीर्थकाल में दश-दश मुनि भंयकर घोर उपसर्ग सहकर देवों द्वारा पूजित होकर ( समाधिमरण करके) विजय आदि अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए, उनका वर्णन है ।९।
प्रश्नव्याकरणांग के तेरानवै लाख सोलह हजार ९३,१६,००० पदों में नष्ट हो गई, मुट्टी में रखी हुई, लाभ , हानि, सुख: दुःख, जीवन, मरण, (हार, जीत, चिन्ता) के संबंध में किये गये प्रश्नों का ( भूत, भविष्य, वर्तमान की अपेक्षा से दिये गये उत्तर का) वर्णन है। १०।
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