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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार विपाकसूत्रांग के एक करोड़ चौरासी लाख १,८४,००,००० पदों में कर्मों का उदय, उदीरणा, सत्ता का वर्णन है।११। (इस प्रकार ग्यारह अंगों का चार करोड़ पन्द्रह लाख दो हजार ४,१५,०२,००० पदों में वर्णन किया है।
दृष्टिवाद नाम के बारहवें अंग के (एक सौ आठ करोड़ अड़सठ लाख छप्पन हजार पाँच १०८,६८,५६,००५ पदों में मिथ्यादर्शन को दूर करने का वर्णन है। दृष्टिवाद अंग के) पाँच भेद हैं – परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्व , चूलिका।१२। (बारह अंगों में कुल एक सौ बारह करोड़ तेरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच १,१२,८३,५८,००५ पद हैं)
परिकर्म : दृष्टिवाद अंग के प्रथम भेद परिकर्म के भी पाँच भेद हैं। चन्द्रप्रज्ञप्ति , सूर्यप्रज्ञप्ति , जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीप सागर प्रज्ञप्ति व्याख्याप्रज्ञप्ति।
चंद्रप्रज्ञप्ति के छत्तीस लाख पाँच हजार ३६,०५,००० पदों में चंद्रमा की आयु, गति, कला की हानि-वृद्धि , देवी, वैभव, परिवार आदि का वर्णन है।४।
सूर्यप्रज्ञप्ति के पाँच लाख तीन हजार ५,०३,००० पदों में सूर्य की आयु गति, वैभव आदि का वर्णन है ।।
जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के तीन लाख पच्चीस हजार ३,२५,००० पदों में जंबूद्वीप संबंधी क्षेत्र, पर्वत, सरोवर, नदी आदि का वर्णन है ।।
द्वीपसागर प्रज्ञप्ति के बावन लाख छत्तीस हजार ५२,३६,००० पदों में असंख्यात द्वीप समुद्रों का, मध्यलोक के अकृत्रिम जिन मंदिरों का, भवनवासी-व्यंतर-ज्योतिषी देवों के आवास का वर्णन है।४।
व्याख्या प्रज्ञप्ति के चौरासी लाख छत्तीस हजार ८४,३६,००० पदों में जीव पुद्गलादि द्रव्य का वर्णन है।५।
इस प्रकार पाँच प्रकार के परिकर्म का (एक करोड़ इक्यासी लाख पाँच हजार १,८१,०५,००० पदों में) वर्णन किया है।
सूत्र : दृष्टिवाद अंग का दूसरा भेद सूत्र के अठासी लाख ८८,००,००० पदों में जीव अस्तिरूप ही है, नास्तिरूप ही है, कर्त्ता ही है, इत्यादि क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी एकान्तवादियों द्वारा कल्पित जीव के स्वरूप का एक पक्ष की अपेक्षा मात्र से ही वर्णन कैसा होता है, वह बताया है।
प्रथमानुयोग : दृष्टिवाद अंग का तीसरा भेद प्रथमानुयोग के पाँच हजार ५,००० पदों में विशेष ज्ञान रहित मिथ्यादृष्टि अव्रती को समझाने के लिये तिरेसठ शलाका महापुरुषों के चरित्र का वर्णन है।
पूर्व - दृष्टिवाद अंग के चौथे भेद में चौदह पूर्व हैं।
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