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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
२१०]
ऊपर चार दिशाओं में चार सिद्धों की प्रतिमा विराजमान हैं; चैत्यवृक्ष के मूल की पीठ में उसके ऊपर चार दिशाओं में चार अर्हन्तों की प्रतिमा विराजमान हैं।
इन वृक्षों की पीठ के आगे पीठ हैं उसमें अनेक प्रकार के रंगों सहित रंगबिरंगी महाध्वजा खड़ी हैं। उन ध्वजाओं के स्वर्णमय स्तंभ सोलह योजन ऊँचे एक कोश चौड़े है। उन स्तंभों के आगे के भाग में मनुष्यों के नेत्रों तथा मन को रमणीक लगने वाले अनेक प्रकार के ध्वजा वस्त्ररूप रत्नों द्वारा शोभित हो रहे हैं, तीन छत्र भी शोभित हो रहे हैं। इन ध्वजाओं में वस्त्र नहीं हैं। वस्त्र जैसा आकार, कोमलता, अनेक रंग, ललितता लिये रत्नरूप पुद्गल ही उस प्रकार परिणत हुए हैं। वे वस्त्र रत्नमय ही जानना।
उस ध्वजा पीठ के आगे जिनमंदिर है। उसकी चारों दिशाओं में अनेक प्रकार के फूलों सहित सौ यौजन लम्बे, पचास योजन चौड़े, दश योजन ऊँचे मणि-स्वर्णमय वेदियों सहित चार सरोवर हैं। उसके आगे, जाने के लिये रास्ता है। उस रास्ते के दोनों ओर पचास योजन ऊँचे, पचास योजन चौड़े देवों के मनोरंजन करने के रत्नमय दो भवन हैं। उसके आगे तोरण हैं, जो मणिमय स्तंभों के अग्रभाग में स्थित हैं। दो स्तंभों के बीच दीवाल रहित ऊपर की ओर गोलाई का आकार लिये जो रचना होती हैं उसे तोरण कहते हैं। वे तोरण मोतियों की जाली तथा घंटाओं के समूह सहित हैं। मोतियों के जाल और घंटाओं के समूह तोरणों में लूमते हुए हैं।
प्रत्येक तोरण पचास योजन ऊँचा पच्चीस योजन चौड़ा है। वे तोरण जिनबिम्बों के समूह से शोभनीक हैं। जिनबिम्बों का आकार तोरणों में ही बना हुआ हैं। तोरण के आगे स्फटिकमणिमय प्रथम कोट हैं। उसके भीतर कोट के द्वार के दोनों ओर सौ योजन ऊँचे पचास योजन चौडे रत्नों के बने हए दो भवन हैं। इस प्रकार यह प्रथम कोट तक का वर्णन किया। पूर्व के द्वार में मंडप आदि का जो प्रमाण कहा हैं उससे आधा-आधा दक्षिण द्वार तथा उत्तर द्वार में प्रमाण जानना। अन्य वर्णन तीन तरफ समान जानना।।
वे चैत्यालय सामायिक आदि क्रिया करने के स्थान वंदना-मंडप, स्नान करने के स्थान अभिषेक-मंडप, नृत्य करने के स्थान नर्तन-मंडप, संगीत साधन करने के स्थान संगीतमंडप, अवलोकन करने के स्थान अवलोकन-मंडप सहित हैं; क्रीड़ा करने के स्थान क्रीड़न गृह, शास्त्रादि अभ्यास करने के स्थान गुणनगृह, तथा विस्तीर्ण उत्कृष्ट चित्रामपट्ट आदि दिखाने के स्थान , पट्टशाला आदि सहित हैं।
अब प्रथम कोट और दूसरे कोट के बीच के अंतराल का स्वरूप कहते हैं। वहाँ सिंह, हाथी बैल, गरुड़, मोर, चंद्रमा, सूर्य, हंस, कमल, तथा चक्र – इन दश आकारों की ध्वजायें हैं, जो अलग-अलग प्रत्येक एक सौ आठ, कुल एक हजार अस्सी एक दिशा में हैं। इस प्रकार चारों दिशाओं की चार हजार तीन सौ बीस मुख्य ध्वजायें हैं। एक-एक मुख्य ध्वजा की एक सौ आठ छोटी ध्वजायें हैं। ( समस्त छोटी ध्वजाओं की संख्या चार लाख छियासठ हजार पाँच सौ साठ है।)
आगे दूसरे कोट तथा तीसरे कोट के बीच के अंतराय में अशोक वन, सप्तच्छद वन, चम्पक वन तथा आम्रवन – ये चार वन हैं। यहाँ पर स्वर्णमयी फूलों से शोभायमान, मरकत मणिमय ( हरी
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