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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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१६,०००
४,०००
८,०००
आधी जानना। मणिमाला चार हजार हैं, धूपघड़े बारह हजार हैं, स्वर्णमाला बारह हजार हें। उन छोटे द्वारों के आगे मुखमंडप हैं, उनमें स्वर्ण घट आठ हजार हैं, स्वर्ण माला आठ हजार है। धूप घड़े आठ हजार हैं तथा छोटी घंटियां मुख मंडप में अनेक प्रकार की हैं। उस मंदिर के पृष्ठ भाग में मणिमाला आठ हजार हैं, स्वर्ण माला चौबीस हजार हैं। मालायें दीवाल के चारों ओर लूम्बती लटकती हुई जाननी, घड़े पृथ्वी पर रखे हुए जानना। घंटा आदि मंडप में लूम्बते लटकते जानना।
संक्षेप में अकृत्रिम जिन चैत्यालयों की बाह्य रचना का वर्णन इस प्रकार है :स्थान
मणिमाला स्वर्णकलश स्वर्णमाला धूपघट देवच्छद के अग्रभाग में ।
३२,००० महाद्वार के दोनों बाजू में | ८,०००
२४,००० २४,००० महाद्वार के आगे मुखमंडप में
१६,००० १६,००० उत्तर दक्षिण के छोटे द्वारों में
१२,००० १२,००० उत्तर दक्षिण के छोटे द्वारों के मुखमंडप में
८,०००
८,००० पृष्ठ भाग में ८,०००
२४,००० अब मुखमंडप का विस्तार कहते हैं - इस मंदिर के आगे मुखमंडप है। वह जिनमंदिर के समान ही सौ योजन लम्बा, पचास योजन चौड़ा तथा सोलह योजन उँचा हैं। उस मुखमंडप के आगे चौकोर प्रेक्षणमंडप है। वह प्रेक्षणमंडप सौ योजन चौड़ा, सौ योजन लम्बा, सोलह योजन से अधिक ऊँचा है। उस प्रेक्षणमंडप के आगे अस्सी योजन चौड़ा, अस्सी योजन लम्बा दो योजन ऊँचा स्वर्णमयी पीठ है। पीठ का अर्थ चबूतरा है। उस पीठ के बीच में चौकोर चौंसठ योजन लम्बा, चौसठ योजन चौड़ा, सोलह योजन ऊँचा स्थानमंडप नाम का सभामंडप है। __ इस स्थानमंडप के आगे चालीस योजन ऊँचा स्तूपों का मणिमय पीठ है। वह पीठ चार द्वारों सहित बारह कमल की वेदियों सहित हैं। उस पीठ के बीच में तीन कटनी सहित चौंसठ योजन लम्बा, चौंसठ योजन चौड़ा, सोलह योजन ऊंचा बहुत रत्नमय जिनबिम्बों सहित स्तूप है। तीन कटनी लिये जो रत्नराशि है उसका नाम स्तूप है।
उसके ऊपर जिनबिम्ब विराजमान हैं। इस प्रकार के नव (९) स्तूप हैं। उनका स्वरूप क्रम से बतलाते हैं। स्तूप के आगे एक हजार योजन चौड़ा लम्बा, चारों ओर बारह बेदी सहित स्वर्णमय पीठ है। उस पीठ के ऊपर चार योजन लम्बा एक योजन चौड़ा पेड़ ( स्कंध ) है। उस पेड़ के चारों ओर बहुत मणिमय तीन कोटों सहित बारह योजन लम्बी चार महाशाखायें हैं, अनेक छोटी शाखायें हें, तथा ऊपर शिखर पर वह पेड़ बारह योजन चौड़ा हैं, अनेक प्रकार के पत्ते, फूल तथा फलों से युक्त है।
इस प्रकार के एक लाख चालीस हजार एक सौ बीस वृक्षों के परिवार सहित सिद्धार्थ और चैत्य नाम के दो वृक्ष हैं। उन वृक्षों के मूल में पीठ है। सिद्धार्थ वृक्ष के मूल की पीठ में उसके
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