SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २०८] [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार तीसरे कोट के बीच में ध्वजा हैं, तीसरा कोट तथा चैत्यालय के बीच चैत्यभूमि है। उन जिनभवनों में एक सौ आठ गर्भगृह हैं। उन जिनभवनों के बीच रत्नों के खम्भों सहित स्वर्णमय दो योजन चौड़ा, आठ योजन लम्बा, चार योजन ऊँचा देवच्छद अर्थात् गुंबज छत सहित मंडप है, उसमें भी एक सौ आठ गर्भगृह हैं। उन गर्भगृहों में भगवान आदिनाथ के शरीर के बराबर ऊंचाई वाली रत्नों की एक सौ आठ जिन प्रतिमायें हैं। ___कैसी हैं जिन प्रतिमायें ? अलग-अलग सिंहासन, तीन छत्र, अष्ट प्रातिहार्य सहित हैं जिनके मस्तक पर नीले केश हैं, वे केश पुद्गल रत्नों के ही बने हुए हैं, बाल नहीं है, पुद्गल ही हैं। वज्र अर्थात् हीरामयी दांतों के आकार सहित हैं, विद्रुम अर्थात् मूंगा के समान लाल ओंठ हैं, नई कोंपल के समान शोभायमान लाल हथेली तथा पादतल हैं। श्री राजवार्तिक में लिखा हैं - प्रतिमा के नयन लोहिताक्ष मणि से व्याप्त अंक स्फटिक मणिमय हैं। नेत्रों का श्याम तारा अरिष्ट मणिमय है, पलक (वाफणी) अंजनमूल मणिमय हैं। भृकुटि (भौंह) की लता नीलमणिमय केशों सहित हैं। ऐसी जिन प्रतिमायें हैं। दश ताल प्रमाण लक्षणों से भरी हैं। यहाँ ताल का प्रमाण बारह अंगुल है। प्रथम देखते ही ऐसा लगता है कि - जिनेन्द्र मानों देख ही रहे हों, मानो बोल ही रहे हों। प्रत्येक गर्भगृह में बराबर पंक्ति में नागकुमारों के व यक्षों के बत्तीस जोड़े (युगल) हाथों में चमर लिये खड़े हैं। एक-एक गर्भगृह में एक-एक जिन प्रतिमा के दोनों ओर सभी आभरण से सजकर खड़े हुए तथा श्वेत निर्मल रत्नमय चमर हाथों में धारण किये नागकुमार व यक्ष चौंसठ चमर ढार रहे हैं। इस प्रकार एक सौ आठ प्रतिमाओं के अलग-अलग प्रातिहार्य एक-एक जिनालय में हैं। उन जिन प्रतिमाओं के दोनों बाजू में श्रीदेवी और सरस्वती देवी, सर्वाह यक्ष , सनत कुमार यक्ष तथा इनके रूप-आकार बने हैं। प्रत्येक जिन प्रतिमा के पास आठ प्रकार के मंगल द्रव्य शोभित हैं। झारी १. कलश २. दर्पण ३, बीजना ४, ध्वजा ५, चमर ६, छत्र ७, ठोना ८, ये आठ मंगल द्रव्य हैं। प्रत्येक प्रतिमा के पास प्रत्येक मंगल द्रव्य एक सौ आठ प्रमाण शोभित हैं। गर्भगृह के बाहर की रचना इस प्रकार की जानना - मणि जड़ित स्वर्णमय पुष्पों से शोभित देवच्छद बना है, उसके आगे बीच के भाग में चाँदी और स्वर्णमयी बत्तीस हजार कलश हैं। महाद्वार के दोनों बाजुओं में चौबीस हजार धूप के घड़े हैं। उसी महाद्वार के बाहर दोनों तरफ मणिमयी मालायें हैं। उन मणिमय मालाओं के बीच में चौबीस हजार स्वर्णमयी मालायें हैं। उस महाद्वार के सामने आगे मुख मंडप हैं। उस मुख मंडप में सोलह हजार स्वर्ण कलश हैं, सोलह हजार स्वर्णमयी मालाये हैं, सोलह हजार धूप घड़े हैं। उस मुख मंडप के बीच में ही बहुत मीठे झन-झन शब्द करती मोती व मणियों से बनी किंकणी अर्थात् छोटी-छोटी घंटियाँ तथा उन सहित अनेक प्रकार के घंटों के समूह अनेक प्रकार की रचना सहित शोभित हो रहें हैं। अब जिन मंदिर के छोटे द्वारों का स्वरूप कहते हैं – जिन मंदिर के दक्षिण उत्तर के बाजू के मध्य में जो छोटे-छोटे दरवाजे हैं उनकी रचना यहाँ जो बड़े दरवाजे की कही हैं उससे आधी प्रत्य Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy