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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
[१९५ कितने ही कुपात्रों को दान देकर बहुत भोगों सहित रहनेवाले म्लेच्छों में उत्पन्न होते हैं। कितने ही कुपात्र दान के प्रभाव से नीचकुलों में बहुत धन के धनी, मासंभक्षी, शराब पीने वाले, वेश्यागामी , निरोग शरीरवाले होते हैं।
कितने ही कुपात्र दान के प्रभाव से राजाओं के नौकर, नौकरानी, हाथी, घोड़ा, बन्दर, कुत्ता इत्यादि होकर अच्छा भोजन, वस्त्र, आभरण आदि प्रचुर भोग-उपभोग सामग्री भोगकर मरकर दुर्गति में चले जाते हैं। कुपात्र भी अनेक प्रकार के हैं, दातार के भाव भी अनेक प्रकार के हैं, दान की सामग्री भी अनेक प्रकार की हैं, इसलिये दान का फल भी अनेक प्रकार का है।
दयादान ऐसा होता है - कोई भूखा हो, दरिद्री हो, अंधा हो, लूला हो, लंगडा हो, रोगी हो, अशक्त हो, वृद्ध हो, बालक हो, विधवा हो, पागल हो, अनाथ हो, विदेशी हो, अपने संघ के साथियों से बिछुड़ा हो, जेल से छूटकर आया हो, बंधन में रहा हो, दुष्टों के डर से भागा हो, लुटकर आया हो, जिसका कुटुम्ब मर गया हो, डरा हुआ हो ऐसा चाहे पुरुष हो, स्त्री हो, बालक हो, कन्या हो, तथा तिर्यंच हो; इनको भूख, प्यास, ठंड, गर्मी, रोग, वियोग आदि से दुःखित जानकर करुणाभाव से भोजन, वस्त्र आदि देना वह करुणादान है, परन्तु उनकी जाति, कुल , आचरण आदि जानकर यथायोग्य दान करना चाहिये।
जो अभक्ष्य करनेवाले हैं उन्हें तो भोजन, अन्न, औषधि मात्र ही देना। जो निंद्य आचरण करनेवाले नहीं हैं उनका दुःख दूर करने योग्य रूपया पैसा भी देना तथा भोजन, वस्त्र, औषधि, स्थान व उपदेश भी देना। जो स्थान देने योग्य नहीं हों उन्हें दुःखी देखकर रोटी, अन्न मात्र देकर चलता कर देना। जो वैयावृत्य करने योग्य हों उनका वैयावृत्य भी करना, ज्ञानदान भी देना।
पात्र, कुपात्र, अपात्र का विचार किये बिना केवल दयामात्र ही करना करुणादान हैं, तो भी देश, काल, परिणाम, जाति, कुल आदि का विचार सहित यत्न सहित दान करना चाहिये। मांस-भक्षी, शराब पीनेवाले को रुपया-पैसा नहीं देना। बहुत दुःखी पर करुणा आवे तो अन्न मात्र दान देना। इसके फल में यश, कीर्तन आदि की इच्छा नहीं करना। जो दान देने को योग्य नहीं हैं वे अपात्र हैं।
अपात्र के लक्षण : अब अपात्र के लक्षण कहते हैं – जो दया रहित हो, हिंसा के आरंभ में आसक्त हो, महालोभी तथा परिग्रह बढ़ाना चाहता हो, धनी होकर के भी मांगता हो, यज्ञादि करनेवाले, वेदों में कही हिंसा धर्म में लीन हो, चंडी भवानी का सेवक होकर बकरा, भैंसा का घात करनेवाला हो, कुदान को लेनेवाला हो, शराबी हो, भंगेड़ी हो, वेश्यागामी हो, जिनधर्म का द्रोही हो, शिकार आदि में धर्म कहनेवाला हो, परधन-परस्त्री का चाहनेवाला हो, अपनी प्रशंसा करनेवाला हो, व्रती नाम धराकर व्रतभंग करके पाँच पापों में आसक्त हो, बहुत आरंभी हो, बहु-परिग्रही हो, तीव्र कषायी हो, असत्य भाषण में लीन हो, खोटेशास्त्रों का उपदेश देनवाला हो, तथा जिनशास्त्रों में खोटेशास्त्र मिलाकर मिथ्या प्ररूपणा करनेवाला, व्यसनी, पाखण्डी, अभक्ष्यभक्षक, व्रत-शील-संयम-तप से पराङ्मुख, विषयों का लोलुपी, जिह्वा इंद्रिय का वशीभूत, मिष्ट भोजन का लंपटी - ये सभी अपात्र हैं।
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