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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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। करना।
है। तुमने तो हमारे अनेक कार्य सुधारे हैं तथा हमारे भले करने को ही करते हो। हमारे कर्म के उदय के अनुसार कोई काम बिगड़ भी जाता है। इस प्रकार प्रिय वचन बोलकर उसे संतोषित करना।
निरन्तर ऐसे की परिणाम रखना चाहिये कि - मेरे धन से किसी जीव का उपकार हो जाय तो अच्छा है। दूसरे लोग हमारा हित करें या अहित करें, हमें तो दूसरों का उपकार ही करना चाहिये। कोई बंदीखाने में चला गया हो, किसी झगड़े में फंस गया हो, तो अपने पास से पाँच रुपया देकर उसे छुड़ा लेना। किसी ने भूल से अपना धन चुरा लिया हो तो प्रिय वचन आदि बोलकर समता भाव से निपटा लेना, यदि वह निर्धन हो तो उससे लेने का इरादा व झगड़ा नहीं करना।
कोई चोरी में सजा पा गया हो तो उसकी बदनामी-बेइज्जती नहीं करना, जो अपने आश्रित हो तो उसका पालन-पोषण करना। विधवा हो, अनाथ हो, रोग-वियोग आदि दुःख से दुःखी हो तो उनका दुःख दूर करने में सावधानी करना। ___बालक हो, बाल विधवा हो उनका बहुत अच्छी तरह सम्हाल कर प्रतिपालन करना। अपने से जो बैर रखता हो, उपकार करने पर भी उपकार नहीं मानता हो, उससे भी गुण ग्रहण करना, दान सम्मान करना। यदि अवसर पाकर भी अपने मित्र, बांधव आदि का सम्मान नहीं किया तो धन ऐश्वर्य पाकर केवल अपयश की कालिमा ही ग्रहण की।
अपने पुत्र कुटुम्ब आदि का पालन तो सूकरी-कूकरी भी कर लेती है। अवसर पाकर अपना बिगाड़ करनेवाले, धन आजीविका हरनेवाले बैरियों का भी दान सम्मान उपकार करके बैर का अभाव करना दुर्लभ है। मनुष्य जन्म, धन, सम्पदा, यौवन, ऐश्वर्य क्षण भंगुर हैं। अनेकों का धन, जीवन नष्ट हो गया, जिनका नाम और स्थान भी नहीं रहा।
वही कार्तिकेय स्वामी ने कहा है - बहुत अधिक आभरण, वस्त्र, स्नान, सुगंध, विलेपन अनेक प्रकार के भोजन पान आदि द्वारा बहुत सावधानी से पालन पोषण किया हुआ शरीर भी एक क्षण भर में जल से भरे कच्चे घड़े के समान नष्ट हो जाता है। जो लक्ष्मी चक्रवर्ती से लगाकर महापुण्यवानों में नहीं रमी वह लक्ष्मी अन्य पुण्य रहित लोगों में प्रीतिकर कैसे रहेगी ? यह लक्ष्मी कुलवानों में नहीं रमती है।
कोई समझ ले कि मेरा कुल ऊँचा है, मेरे यहाँ तो लक्ष्मी रहती आई है, सो यह जानना सत्य नहीं है। लक्ष्मी तो कुलवानों के पास में भी रहती हैं तथा नहीं भी रहती है; नीच कुलवानों के पास जाकर भी रहती है, धीर के पास में भी रहती है या नहीं भी रहती है, पंडित-प्रवीण के पास भी रहती है व नहीं भी रहती है, मूर्यों के पास भी रहती है, शूरवीरों व कायरों के पास में भी रहती है या नहीं भी रहती है; पूज्य पुरुषों के पास, सुन्दर रूपवानों व सज्जनों के पास, महापराक्रमियों व धर्मात्माओं के पास में यह लक्ष्मी रहती ही है, ऐसा कोई नियम नहीं है।
धन के सम्बन्ध में अज्ञानी की विपरीत मान्यता : संसारी-अज्ञानी भ्रम से ऐसा जानता है –मैं तो कुलवान हूँ, मुझे छोड़कर लक्ष्मी कैसे जायेगी ? मैं धीर हूँ, धैर्यवान के यहाँ तो लक्ष्मी स्थिर
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