SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 18 पंडितजी को अजमेर वर्ष में कई बार आना जाना पड़ता था । सेठ जुहारमलजी के मन ऐसे भव्य जिनालय के निर्माण की कल्पना थी जिसमें तीर्थंकर जिनेन्द्र देव के दर्शन साक्षात् समवशरण युक्त हो सकें । सेठ साहब के मन में यह विचार पं. जी के जैन सिद्धान्त के अनुरूप संस्कृत और कला विषयक ज्ञान तथा रूचि को देखकर उत्पन्न हुआ क्योंकि कुशल व्यक्ति योग्य विद्वान और सामर्थ्यशाली मित्र पाकर अपने मन के संकल्पों और योजनाओं को साकार करने का अवसर नहीं चूकता तदनुसार पंडितजी की पूर्ण देख रेख में उनकी यह भावना साकार हुई और अजमेर अद्भुत समवशरण की अजोड़ महान् पवित्र, अद्भुत, संसार के सभी जीवों में समानता की द्योतक भव्य रचना हुई, जो विश्व विख्यात है। इसी श्रृंखला में भव्य सिद्धकूट चैत्यालय ( नसियाँजी) के निर्माण का शुभारम्भ १० अक्टूबर १८६४ मिती आसोज शुक्ला १० वी. सं. १९२१ की सुमंगल वेला में पंडित सदासुखदासजी के सान्निध्य में ( योजना की निश्चित रूपरेखा के आधार पर) विधि पूर्वक भूमि पूजन का कार्य सम्पन्न हुआ और बहुत ही उत्साह एवं तीव्रगति से उसका निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ था, जो पच्चीस वर्षो तक निरन्तर चलता रहा । सिद्धकूट चैत्यालय की स्थापना-महोत्सव के लगभग तीन चार महीनों बाद ही पंडितजी को आयुष्य के अन्त का आभास होने लगा तो उन्होंने सल्लेखना व्रत ग्रहण किया। शास्त्र प्रसार और संरक्षण पंडितजी ने अपने लिखे पत्रों में गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणासार, अष्टपाहुड, मूलाचार, भगवती आराधना, रत्नकरण्ड टीका, स्वयं स्तोत्र टीका, तत्वार्थसूत्र, तत्वार्थ श्लोक वार्तिक, स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ज्ञानार्णव, अमितगतिश्रावकाचार, हरिवंशपुराण, पद्मपुराण, बाहुबलि चारित्र, संस्कृत चौबीसी पूजा आदि अनेक ग्रंथों की अनेक प्रतिलिपियाँ कराने का जिक्र किया है। पं. जी ने स्वयं भी अपने हाथों से अनेक ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ की है जो जयपुर ओर अजमेर के शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित है। पं. जी ने अपने मित्रों और शिष्यों में भी इसी प्रकार शास्त्र लेखन एवं ज्ञान प्रसार की विशेष अभिरुचि जागृत की। पं. जी की ही प्रेरणा से अनेक विद्वानों ने प्राचीन शास्त्रों पर टीकाएँ लोक प्रचलित सरल ढूँढारी भाषा में लिखी, जो विभिन्न शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित है। पंडितजी की रचनाएँ इस प्रकार है (१) भगवती आराधना की हिन्दी वचनिका (२) मोक्षशास्त्र ( तत्त्वार्थसूत्र ) की लघु टीका ( ३ ) तत्त्वार्थ सूत्र की बडी टीका - अर्थ प्रकाशिका इसके सम्पादन कार्य में पूरे दो वर्ष का समय लगा ( ४ ) समयसार नाटक वचनिका (५) अकलंकाष्टक वचनिका (६) मृत्यु महोत्सव (७) रत्नकरण्ड श्रावकाचार (८) नित्यनियम पूजा व ऋषि मण्डल पूजा - Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy