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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
१७०]
इस प्रकार जिनसूत्र के अनुसार पात्र को, देशकाल के योग्य आहार देना चाहिये तथा मन में हर्ष होना चाहिये। पात्र के गुणों में हर्ष-अनुराग बिना दान देना निष्फल है। जिसे धर्म प्रिय होगा उसे धर्मात्मा में व उसके गुणों में अनुराग होगा ही, ऐसा नियम है।
मुनिराज तो जिनधर्मी की परीक्षा नवधाभक्ति देखकर ही करते हैं। जिसके हृदय में नवधाभक्ति नहीं है, उसके हृदय में धर्म भी नहीं है। धर्मरहित के यहाँ मुनिराज भोजन भी नहीं करते हैं। अन्य भी धर्मात्मा पात्र गृहस्थ आदि है, वे भी आदर बिना लोभी होकर, धर्म का निरादर कराकर, दानग्रहण करने की वृत्ति से भोजन आदि कभी नहीं कहते हैं। जैनीपना ही दीनता रहित परम संतोष धारण करने में है।
दातार को ऐसा आहार, औषधि, शास्त्र , वस्तिका आदि द्रव्य का दान देना चाहिये जिससे राग द्वेष नहीं बढ़े, मद नहीं बढ़े। जिससे मोह, काम , आलस्य, चिंता, असंयम, भय, दुख, अभिमान हो जाय वह द्रव्य दान मे देना योग्य नहीं है। जिस द्रव्य के दान में देने से स्वाध्याय, ध्यान, तप, संतोष की वृद्धि हो वह द्रव्य दान में देने योग्य है। जिससे पात्र का दुःख मिट जाय, रोग नष्ट हो जाय, परिणाम का संक्लेश मिट जाय ऐसा द्रव्य दान में देना योग्य है।
यहाँ दान में पाँच बातें विशेष जानना – दाता, देय, पात्र, विधि, और फल।
दातार के विशेष गुण : दातार कैसा होना चाहिये ? सातगुणों का धारी होना चाहिये। धर्म में तत्पर पात्रों के गुणों के सेवन में लीन होकर पात्र को स्वीकार करना, प्रमाद रहित ज्ञान सहित शांत परिणामी होकर पात्र की भक्ति में प्रवर्तना, दातार का वह भक्ति गुण है ।१।
दान देने में अत्यन्त आसक्त होकर पात्र की प्राप्ति को परम निधान के लाभ समान मानना, वह दातार का तुष्टि गुण है । २।
साधुओं को अपने द्वारा दान हो जाना इसलोक में तथा परलोक में परम कल्याण है, इस प्रकार परिणामों में गाढ़ प्रीति होना, वह दातार का श्रद्धा गुण है । ३।
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का भली प्रकार विचार करके योग्य भक्ष्य पदार्थ का दान देना, वह दातार का विज्ञान गुण है । ४।
दान देकर दान के प्रभाव से संसार सम्बन्धी धन, राज्य, ऐश्वर्य, विद्या मंत्र, यश, कीर्ति आदि फल नहीं चाहना, चह दातार का अलोलुप गुण है । ५। __ जिसके पास धन थोड़ा हो तो भी दान में अधिक उत्साही हो, जिसके दान को देखकर बड़े-बड़े धनी पुरुष भी आश्चर्ययुक्त हो जायें, वह दातार का सात्विक गुण है ।६।।
कलुषता होने का बड़े से बड़ा भी कारण आ जाय तो भी किसी पर रोष नहीं करना, वह दातार का क्षमा गुण है । ७।
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