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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार] [१७१ मुनि, श्रावक तथा अव्रत सम्यग्दृष्टि – ये तीन प्रकार के पात्र हैं। उन्हें दान देने वाले उत्तम दातार में और भी अनेक गुण होना चाहिये। दातार को विनयवान होना चाहिये, विनय रहित का दिया दान निष्फल है। जिसके पास कुछ देने को नहीं हो तो विनय करना ही महादान है। सत्कार करना, प्रियवचन बोलना, स्थान देना, गुणों का स्तवन करना ये भी बड़ा दान है। धर्म में प्रीति हो, दान के अनुक्रम का ज्ञाता हो, दान के काल का ज्ञाता हो, जिनसूत्र का ज्ञाता हो, भोगों की इच्छा रहित हो, सब जीवों पर दयालु हो, रागद्वेष की मंदता हो, सारअसार को जाननेवाला हो, समदर्शी हो, इंद्रियों को जीतनेवाला हो, परीषद आने पर कायरता रहित हो, अदेखसका भाव रहित हो, स्वमत-परमत का ज्ञाता हो, प्रिय वचन सहित हो, व्रतियों के पवित्र गुणों से जिसका चित्त व्याप्त हो, लोक व्यवहार और परमार्थ दोनों को जाननेवाला हो, सम्यक्त्व आदि गुण सहित हो, अहंकार आदि मद रहित हो, वैयावृत्य में उद्यमी हो, ऐसा उत्तम दातार प्रशंसा योग्य है। धन की असारता : जिसके हृदय में निरन्तर ऐसा विचार रहता है - जो धन व्रतियों की सेवा में लग जाय, साधर्मी जनों के उपकार में, श्रावकों के आपदा दुःख निवारने में, धर्म के बढ़ाने में, धर्म मार्ग के चलाने में लगेगा वह धन मेरा है, संसार के अन्य कार्यों में, विषय भोगों में, कुटुम्ब के विषय-कषाय साधने में जो धन खर्च होगा वह केवल बन्ध करनेवाला संसार समुद्र में डुबोनेवाला है। ये कुटुम्ब के लोग जो धन खा रहे हैं वे तो हिस्सेदार हैं, धन बांटनेवाले है, जबरदस्ती धन लूटनेवाले हैं, राग-द्वेष-क्रोधादि कषायें पैदाकर व्रत-संयम का घात करनेवाले हैं, मुझे पाप में प्रेरित करनेवाले हैं। मुझे भी इनके संयोग से ऐसा अज्ञान अंधकार छाया है जिसके कारण धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय, यश-अपयश कुछ भी दिखाई नहीं देता है। अपने स्त्री-पुत्रादि के विषय साधने को अन्य निर्बल तथा भोले-अज्ञानी जीवों का धन ठगने में लूट लेने में परिणाम तुरन्त तैयार हो जाते हैं। इस कुटुम्ब को धन, वस्त्र, आभरण, भोजन आदि से तृप्त करने के लिये झूठ में, कपट में, चोरी में परिणाम निरन्तर लगे रहते हैं। इसलिये अब भगवान वीतराग के धर्म को पाकर कुटुम्ब के लिये धन कमाने के लिये अन्याय में - अनीति में प्रवर्तन नहीं करूँगा। न्यायमार्ग से जो धन कमाऊँगा उसी में से अपना, कुटुम्ब का तथा धर्म के लिये दान का विभाग करके जीवन के शेष दिन व्यतीत करूँगा। दान की प्रेरणा : ये धन, यौवन, जीवन क्षण भंगुर है, अवश्य जायगा। मरण अचानक आयगा, धन-संपदा, कुटुम्ब आदि कोई साथ नहीं जायगा। मेरे दान, तप, शील आदि भावों से कमाया पुण्य अकेला परलोक में मेरा सहायी होकर साथ जायगा। यहाँ जो सभी प्रकार की सामग्री मिली है, वह तो पूर्व जन्म में जैसा दान दिया वैसी फली है। अब उसे दान देने में धर्मात्माओं की सेवा करने में, दुःखी-भूखे जीवों का उपकार करने में लगाऊँगा तो परलोक में सबप्रकार के सुख प्राप्त करूँगा, मोक्षमार्ग की सम्यग्ज्ञान आदि की सामग्री प्राप्त करूँगा। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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