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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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भोगते हुए कोई शरण नहीं है, किसी भी काल में, किसी भी क्षेत्र में, कोई भी रक्षा करनेवाला नहीं है, अतः संसार अशरण है।
अशुभ कर्मों के बंधन से बंधा हुआ, दुःख देनेवाले अशुभ देहरूप पिंजरे में फंसा हुआ , अशुभ कषायों रूप अशुभ भावों में लीन होकर निरंतर अशुभ का ही बन्ध करता है, अशुभ को ही भोगता है, अतः यह संसार अशुभ है। __ इस संसार में जीव अनंतानंत काल से परिभ्रमण करते-करते कभी उत्तम क्षेत्र में निवास, उत्तम कुल, इंद्रियों की पूर्णता, सुन्दर रूप, प्रबल बुद्धि , जगत में पूज्यता-मान्यता तथा राज्य सम्पदा, धन सम्पदा, सुन्दर मित्रों का मिलना, आज्ञाकारी महाप्रवीण सुपुत्र, मनोहर वल्लभा का मिलना, तथा पंडितपना, शूरपना, बलवानपना, आज्ञा, ऐश्वर्य, मनोवांछित भोग, निरोग शरीर आदि कर्म के उदय से प्राप्त हो जायें तो क्षण मात्र में बिजली के समान, इन्द्रधनुष के समान, इन्द्रजालिया के नगर के समान नियम से बिला जाते हैं। फिर अनंतानन्त काल में भी नहीं प्राप्त होते हैं, अतः संसार अनित्य है।
समस्त काल में ही कर्मबन्धन सहित देह पिंजरे में फंसा अनंतानन्त जन्ममरण आदि सहित है, अनंतकाल में भी दु:ख का अभाव नहीं हुआ है, इसलिये संसार दुःख ही है। संसार परिभ्रमणरूप मेरा आत्मा नहीं होता है, इसलिये ये संसार अनात्मा है।
इस प्रकार सामायिक में स्थित गृहस्थ विचार करता है - अहो यह परिभ्रमणरूप संसार अशुभ है, अशरण है, अनित्य हैं, दुःख रूप है, मुझ स्वरूप नहीं है । इस संसार में मिथ्याज्ञान के प्रभाव से मैं अनंतकाल से इसमें निवास कर रहा हूँ।
मोक्ष का स्वरूप : अब मोक्ष अर्थात् संसार से छूट जाना, वह मेरे आत्मा को शरण है। फिर अनंतानंत काल में भी वापिस संसार में आने से रहित है, शुभ है, अनंत कल्याण रूप है, नित्य है, अविनाशी है, अनंतानंत स्वरूप है, जिसमें अनन्त ज्ञान आदि तथा अनाकुलतारूप सुख है, मेरे आत्मा का स्वरूप है, पर का रूप नहीं है।
इस प्रकार सामायिक में स्थित गृहस्थ संसार और मोक्ष के स्वरूप का विचार करता है। साम्यभाव सहित सामायिक दो घड़ी मात्र को भी हो जाये तो महान कर्म की निर्जरा हो जाती है। सामायिक की महिमा कहने को इंद्र भी समर्थ नहीं है। सामायिक के प्रभाव से अभव्य भी ग्रैवेयिक तक उत्पन्न हो जाते हैं। सामायिक के समान धर्म न कोई हुआ है, न होगा। अत: सामायिक को अंगीकार करना ही आत्मा का हित है। जिन्हें सामायिक पाठ का ज्ञान नहीं, याद नहीं है वे एकाग्रता से मन, वचन, काय को निश्चल करके समस्त आरंभ , कषाय, विषयों को त्याग करके पंच नमस्कार मंत्र का ध्यान करते हुए दो घड़ी पूरी करें। अब सामायिक के पाँच अतिचार कहने वाला श्लोक कहते हैं :
वाक्कायमानसानां दुःप्रणिधानान्यनादरास्मरणे । सामयिकस्यातिगमा व्यज्यन्ते पञ्च भावेन ।।१०५ ।।
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