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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम- सम्यग्दर्शन अधिकार [१५५ |पंचम - शिक्षाव्रत अधिकार | अब चार शिक्षाव्रतों का नाम निरूपण करनेवाला श्लोक कहते हैं : देशावकाशिकं वा सामयिकं प्रोषधोपवासो वा । वैय्यावृत्यं शिक्षाव्रतानि चत्वारि शिष्टानि ।।११।। अर्थ :- देशावकाशिक १, सामायिक २, प्रोषधोपवास ३, वैयावृत्य ४ – ऐसे ये चार शिक्षाव्रत कहे हैं। भावार्थ :- ये चार शिक्षाव्रत गृहस्थपने में मुनिपने की शिक्षा का अभ्यास कराते हैं। अब देशावकाशिक शिक्षाव्रत कहनेवाला श्लोक कहते हैं - देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य । प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य ।।१२।। अर्थ :- अणुव्रतों के धारी पुरुषों द्वारा दिन-प्रतिदिन काल की मर्यादा करके विशाल सीमा को थोड़ा-थोड़ा घटाते जाना उसका नाम देशावकाशिक शिक्षाव्रत है। भावार्थ :- पहिले दिग्व्रत में दशों दिशाओं में जाना मंगाना, भेजना, बुलाना इत्यादि की यावज्जीवन की जो मर्यादा की थी वह बहुत थी, उसी में अब प्रतिदिन क्षेत्र की सीमा, काल की मर्यादा करके घटाते हुए व्रत लेना वह देशावकाशिक व्रत है, जैसे पूर्व दिशा में दो सौ कोस तक के आगे नहीं जाने का त्याग यावज्जीवन किया था वह तो दिग्व्रत है। अब इसी में ही प्रतिदिन मर्यादा करके रहना कि आज मैं चार कोस से अधिक नहीं जाऊँगा, या शहर के बाहर नहीं जाऊँगा या अपने घर के बाहर ही नहीं जाऊँगा, वह देशावकाशिक व्रत है। अब देशावकाशिक व्रत में क्षेत्र की मर्यादा कहनेवाला श्लोक कहते हैं : गृहहारि - ग्रामाणां-क्षेत्र-नदी-दाव-योजनानां च । देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः ।।१३।। अर्थ :- तपोवृद्ध जो गणधरदेव हैं वे देशावकाशिक व्रत करने की सीमा-मर्यादा बतलाते हैं - गृह, मोहल्ला, ग्राम, क्षेत्र, नदी, वन, योजन को देशावकाशिक व्रत में सीमा कहते हैं। इनके बाहर मैं इतने समय तक नहीं जाऊंगा, ऐसा नियम लेना। अब देशावकाशिक व्रत में काल की मर्यादा कहनेवाला श्लोक कहते हैं : संवत्सरमृतुरयनंमासचतुर्मासपक्षमृक्षं च । देशावकाशिकस्य प्राहु: कालावधिं प्राज्ञाः ।।९४।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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