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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चतुर्थ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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अब नियम के लिये काल की मर्यादा कहनेवाला श्लोक कहते हैं -
__ अद्य दिवा रजनी वा पक्षो मासस्तथर्तुरयनं वा।
__ इति कालपरिच्छित्या प्रत्याख्यानं भवेन्नियमः ।।८९ ।। अर्थ :- अद्य अर्थात् एक घड़ी, मुहूर्त, प्रहर, दिन, रात्रि, पक्ष, एक माह, ऋतु अर्थात् दो माह, अयन अर्थात् छह माह इत्यादि काल का परिमाण करके त्याग करना वह नियम कहलाता है। इस प्रकार भोगोपभोग परिमाण व्रत का वर्णन किया। अब भोगोपभोग परिमाण व्रत के पांच अतिचार कहनेवाला श्लोक कहते हैं :
विषय विषतोऽनुपेक्षानुस्मृतिरतिलौल्यमतितृषानुभवौ ।
भोगोपभोगपरिमाव्यतिक्रमाः पञ्च कथ्यन्ते ।।१०।। अर्थ :- ये भोगोपभोग परिमाणव्रत के पांच अतिचार त्यागने योग्य हैं।
विषय संताप बढ़ाते हैं तथा विषयों के निमित्त से मरण भी हो जाता है। ये पांच इंद्रियों के विषय विष है। इनमें परिमाण का राग नहीं घटना वह अनुपेक्षा नाम का अतिचार है १ । जो विषय पूर्वकाल में भोगे थे उन्हें बार-बार याद करते रहना वह अनुस्मृति नाम का अतिचार है । वर्तमान में जो विषय भोगता है उनमें अति गृद्धता से तथा अति आसक्त होकर भोगना वह अतिलौल्य नाम का अतिचार है ३। भविष्य में विषयों भोगने की अतितृष्णा बनी रहना वह अतितृष्णा नाम का अतिचार है ४। जिस काल में विषय नहीं भोग रहा है फिर भी ऐसा समझना कि मैं विषय को भोग ही रहा हूं, ऐसा परिणाम वह अनुभव नाम का अतिचार है ५। ___ इस प्रकार भोगोपभोग परिमाणव्रत के पांच अतिचार छोड़कर व्रत को शुद्ध पालना चाहिये।
चौथा - गुणव्रत अधिकार
समाप्त
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