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________________ १५०] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार अपने लिये प्रयोजन का नहीं हो व परिणामों को बिगाड़ने वाला हो, दोष सहित हो उसका त्याग तो यावज्जीवन यम नाम के परिमाण पूर्वक ही करना चाहिये। इस भोगोपभोग परिमाण के द्वारा अनेक पापों का आस्त्रव रुक जाता है, इंद्रियाँ वश में हो जाती है, राग बहुत मंद हो जाता है, व्यवहार शुद्ध हो जाता है, मन वश में हो जाता है, व्यवहार-परमार्थ दोनों ही उज्जवल हो जाते हैं। इसलिये भोगोपभोग परिमाणवत ही आत्मा का हित हैं; विरुद्ध भोग तो त्यागना ही चाहिये। अविरुद्ध भोगों को भी अपनी शक्ति प्रमाण देश-काल देखकर दिन-रात्रि के काल की मर्यादापूर्वक त्याग करना चाहिये। उसमें भी फिर दो घड़ी, चार घड़ी की मर्यादा लेकर त्याग करना चाहिये। इससे कर्मों की बड़ी निर्जरा होती है। अब और भी भोगोपभोग के परिमाण कहनेवाला श्लोक कहते हैं : भोजनवाहनशयनस्नानपवित्राङ्गरागकुसुमेषु । ताम्बूलवसनभूषण मन्मथसङ्गीतगीतेषु ॥८८।। अर्थ :- भोगोपभोग परिमाणव्रत में नित्य ही इस प्रकार नियम करना चाहिये - आज के दिन में एक बार ही भोजन करूँगा या दो बार भोजन करूँगा या तीन बार इत्यादि भोजन करने का परिमाण करना; अथवा मैं आज के दिन इतनी जाति का अन्न तथा इतने रस, इतने प्रकार व्यंजन खाऊंगा. अधिक प्रकार के नहीं खाऊंगा-ऐसा भोजन का नियम करना चाहिये। वाहन, हाथी, घोड़ा, रथ, ऊंट, बैल, पालकी, वहली ( मोटर, रेल) नाव, जहाज (हवाईजहाज) इत्यादि वाहन के ऊपर बैठने-चढ़ने का नियम करना चाहिये। पलंग, खाट, बिस्तर इत्यादि में शयन करने का नियम करना चाहिये – मैं आज पलंग आदि पर ही शयन करूंगा या भूमि पर ही शयन करूंगा। ___आज एक बार स्नान करूँगा, या दो बार स्नान करूँगा या स्नान ही नहीं करूँगा इत्यादि नियम करना चाहिये। पवित्र अंगराग अर्थात् चन्दन, केशर, कपूर आदि का विलेपन करना या नहीं करना इसका भी नियम करना चाहिये। फूल तथा फूलों की माला, आभरण आदि धारण करने का भी नियम करना चाहिये। ताम्बल, इलायची. सुपारी, लौंग आदि खाऊंगा इसका भी नियम करना चाहिये। वस्त्रों का भी नियम करना चाहिये कि आज इतने वस्त्र पहिनूंगा, अधिक नहीं पहिनूंगा। आज इतने ही आभरण पहिनूंगा, अधिक नहीं पहिनूंगा-ऐसा आभरण पहिनने का भी नियम करना चाहिये। ___कामसेवन का भी नियम करना चाहिये; नृत्य देखने का भी नियम करना चाहिये; गीत गाने का तथा कलाकारों से गीत सुनने का भी नियम करना चाहिये। हरितकाय के भी खाने का नियम करना, षट् रस के खाने-पीने का नियम करना, पानी पीने का भी नियम करना, सिंहासन, कुर्सी, चौकी इत्यादि आसन पर बैठने का भी नियम करना चाहिये। इस प्रकार अपने योग्य भोग-उपभोग का भी नित्य नियम करनेवाले के भोजन-पानी करते हुए भी निरन्तर संवर होता है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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