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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चतुर्थ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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घी, तेल, जल इत्यादि रस चमड़े के बर्तन में रखा हुआ खाने योग्य नहीं है, उसमें असंख्यात त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। चमड़े के सींघड़ा – कुम्पा ( बर्तन) बनते है उनको मांस को जमीन में गाड़कर पश्चात-कूटकर मिट्टी के सांचे के ऊपर बनाते हैं। इनसे छुआया गया घी, तेल, जल मांस के ही समान है। जब से मुसलमानों का राज्य हुआ तभी से इनकी प्रवृत्ति मुसलमानों ने चलाई है। यदि चमड़े से बिना छुआ घृत आदि नहीं मिलता हो तो सूखा ही भोजन करो। फागुन के बाद तिल में तथा सिंघाड़ों में बहुत त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं इसलिये फागुन के बाद तिल अथवा सिंघाड़ा कभी नहीं खाना चाहिये। ____ पानी को मोटे, दुहरे कपड़े से छानकर पीना चाहिये, दूसरों को भी छानकर ही पिलाना चाहिये। छानकर ही पशुओं को पिलाना चाहिये। अनछने जल से स्नान, भोजन, कपड़े धोना इत्यादि कोई भी क्रिया नहीं करना चाहिये। जल में यत्नाचार क्रिया करने से दयावानपने की सीमा बनी रहती है। बर्तन के मुख से तिगुना लम्बा चौड़ा दोहरा नवीन वस्त्र से पानी छानकर, बिलछानी को दूसरे बर्तन में ले जाकर जल के स्थान में पहुँचा देना चाहिये। जल में यत्नाचार की यही मर्यादा है। छानने के बाद दो घड़ी की मर्यादा है, फिर काम में लेना है तो फिर छानकर काम में लाओ। गर्म किया हुआ जल दो प्रहर तक काम में लाओ। बहुत उबालकर गर्म किया है तो आठ प्रहर तक काम में लाओ, उसके बाद बिना छाने काम का नहीं रहता है।
कन्दमूल त्याग : कितनी ही वस्तुओं के खाने में त्रस जीवों का घात होना जानकर उनको बिलकुल ही नहीं खाना चाहिये। जैसे – बेर लटों के प्रत्यक्ष स्थान हैं, भिंडी में बहुत लटें उत्पन्न होती हैं, बैंगन, तरबूज, कोहला, पेठा, जामुन, आडू, बड़वाला , गोल अंजीर, कठूमर, ऊमरफल, पीलू, आलू, जामफल, टींडू, अज्ञातफल, सूक्ष्मफल, बीजाफल, चलितरसफल, साराफल, पत्रशाक, कन्द, मूल, अदरक, श्रृंगबेर, झाड़ी के बेर, सलगम, प्याज, लहसुन, गाजर, किशोरिया, कचनार, महुआ, क्षीर वृक्ष का फल, खिन्नी, नीम का फल (निबोरी) इत्यादि अनेक फल, केवड़ा-केतकी आदि फूल उनमें तो प्रत्यक्ष प्रकट दोष हैं आगम में भी कहे हैं। परमागम से वनस्पति का ऐसा स्वरूप जानना।
वनस्पति त्याग : वनस्पति के दो भेद हैं - एक प्रत्येक, दूसरी साधारण। प्रत्येक के तो एक शरीर में एक जीव होता है तथा साधारण के शरीर में अनंतानंत जीव होते हैं। साधारण वनस्पति खाने से अनंतानंत जीवों का घात होता है, ऐसा जानकर उसका त्याग करना उचित ही है।
ण और प्रत्येक को पहिचानने के लक्षण इस प्रकार हैं- जिस वनस्पति के लीक प्रकट नहीं हुई हो, रेखा सी नहीं दिखाई देती हो, कली प्रकट नहीं हुई हो, पेली प्रकट नहीं हुई हो, जिसे तोड़ने से समभंग हो जाय, डंडी नहीं टूटे, जिसमें तांतू, तूतड़ा प्रकट नहीं हुआ हो वह साधारण वनस्पति है, इसके एक अणुमात्र में अनंतानंत जीव होते हैं। जिस वनस्पति में धार, कली, रेखा, पेली प्रकट दिखाई देती हो, वह साधारण नहीं प्रत्येक वनस्पति है। जिसे तोड़ने से टेड़ी तिरछी टूटे, सीधी चाकू से बनायी जैसी साफ बराबर नहीं टूटे, जिसमें तूतड़ा तार प्रकट हो गया हो, वह प्रत्येक वनस्पति है।
साधा
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