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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १४२] [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार कोई वनस्पति पहले साधारण होती है, वही एक अंतर्मुहूर्त में प्रत्येक हो जाती है, कोई साधारण ही बनी रहती है। पान, फूल, बीज, फल, डाहली, कोंपल, इत्यादि सभी साधारण प्रत्येक की यही पहिचान जानना। पत्ते में समभाग आदि हो तो साधारण पत्ता है, अन्य सभी वृक्ष साधारण नहीं है। बीज, कोंपल समभंग वाली हो, रेखा आदि प्रकट नहीं हो तो वे सभी बीज-कोंपल साधारण हैं, अन्य साधारण नहीं है। इस प्रकार इस वनस्पति में कोई साधारण मिलती है, कोई प्रत्येक हो जाती है इत्यादि दोषरूप हैं। वनस्पति में संसर्ग से अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है, ऐसा जानकर जो जिनेन्द्रदेव के धर्म को धारण करके पापों से भयभीत हैं वे सभी हरितकाय का त्याग करें, जिह्वा इंद्रिय को वश में करें। जिनकी समस्त हरितकाय को त्याग करने की सामर्थ्य नहीं है वे कंदमूल आदि अनंतकाय का तो जीवन भर के लिये त्याग करें। जो पंच उदम्बर आदि प्रकट त्रस जीवों से भरे हैं ऐसे फल , पुष्प, शाक, पत्ते आदि को खाना छोड़कर त्रसघात रहित दिखाई देने वाले ऐसी तरकारी, फल आदि दस-बीस को अपने परिणामों के योग्य जानकर नियम ले लेना चाहिये। इनके सिवाय अट्ठाईस लाख कोटि कुल वनस्पतिकाय हैं उनका त्याग करके अपना भार उतार देना चाहिये। प्रामाणिक हरितकाय का नियम करनेवाले के करोड़ो अभक्ष्य टल जाते हैं। उसमें पत्ता जाति तो खाने के योग्य ही नहीं है। त्रस की उत्पत्तिवालों को छोड़कर, अन्य का भी बहुत घटाकर नियम लेना चाहिये। बिना घटाये निरर्गल रहने से असंयमीपना का आस्रव होता है। अतः हरितकाय के खाने में नियम व्रत करना योग्य हैं। जिस भोजन के ऊपर फूल न आ जाये, ऊपर फूल सा नीला, हरा, लाल आ जाये तो वह भोजन नहीं खाना चाहिये, उसमें अनंत जीवों का घात है। जिसके ऊपर फूली-फंफूदी आ जाये उसे दूर से ही त्याग देना चाहिये। _मोह के कारण, प्रमाद उत्पन्न करनेवाले, ज्ञान को बिगाड़नेवाले जिह्वा इंद्रिय तथा उपस्थ (काम) इंद्रिय को विकल करनेवाले ऐसे भांग, तमाखू, छोतरा, अमल, हुक्का, जर्दा इत्यादि अभक्ष्यों का खाना पीना जिनधर्मियों को त्यागने योग्य है। ये अमल पराधीन कर देते हैं। अफीम त्याग : अफीम खाने वाले को यदि एक घड़ी अफीम नहीं मिले तो वह जमीन में बेहोश होकर गिर जाता है। वेदना के आर्तपरिणाम से पशु जैसा जमीन में पड़ा पैर रगड़ता हे, निर्लज्ज होकर याचना करता है, नेत्रों से पानी बहने लगता है। यदि उसे अफीम मिल जाती है तो नशे में आकर भूला हुआ सा ऊंघता रहता है, जिह्वा इंद्रिय की लोलुपता बढ़ जाती है। स्वाध्याय, धर्मश्रवण, व्रत, संयम, उपवास आदि दूर से ही छोड़ देता है। उसकी बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाती हे, उत्तम आचरण नष्ट हो जाता है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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