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_Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चतुर्थ - सम्यग्दर्शन अधिकार ]
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लोभ कषाय की तीव्रता महाहिंसा है। जुआरी के परिणाम अत्यंत निर्दयी होते हैं। वह हमेशा दूसरे का घात करना ही विचारता है। यदि जुआ में धन हार जाता है तो चोरी करता है, धन के लिये लोगों को मार डालता है। जुआरियों में आपस में बहुत झगड़ा होता है, मारपीट होती है, मायाचारी तो रहती ही है। जिनसे बहुत प्रेम होता है उनसे भी बहुत कपट करके अनेक प्रकार से छल करके धन लेना ही चाहता है। जुआ तो कपट का स्थान ही है, हजारों छल रचे जाते हैं। जुआरी अपनी स्त्री को भी जुआ में दांव पर लगा देता है, पुत्रपुत्री को भी दांव पर लगा देता है। यदि स्त्री को हार जाता है, पुत्री को हार जाता है तो उन्हें जुआरियों को दे देता है ।
जुआरी दरिद्री - व्यसनी को भी अपनी पुत्र ब्याह देता है। जुआ में अपने रहने का मकान भी बेच देता है, दांव पर लगा देता है, पुत्र को भी बेच देता है। लाखों के धन का धनी एक क्षणभर में अपना समस्त धन हारकर दरिद्री हो जाता है तथा महान् आर्तध्यान रौद्रध्यान से मरकर दुर्गति में भ्रमण करता है । यदि जुए में धन जीतकर लाता है तो अभिमान पैसा हो जाता है, उसका धन कुमार्ग में ही खर्च होता है। महारौद्रध्यान के प्रभाव से मरकर महाकुयोनि पाकर संसार में भटकता रहता है।
जुआरी मद्यपान भंगपान आदि भी करता है, वेश्याओं आसक्त हो जाता है । उसका धन सुमार्ग में नहीं लगता है। उससे न्यायरूप कोई भी आजीविका नहीं की जा सकता है। जुआरी का कोई विश्वास ही नहीं करता है, उसे कोई धन उधार नहीं देता है। जुआरी कभी सत्यवचन नहीं बोलता है, जुआरी के शुभभाव नहीं होते हैं। अपने पूर्वोपार्जित कर्म के द्वारा दिये हुए न्याय के धन में कभी संतोष नहीं करता है। एकांत में किसी को भी अकेला पाकर उसे मारकर धन छीनकर ले जाता है; अपना बहुत ही खास निकट का रिश्तेदार-भाई हो, उसे भी एकांत में मारकर जेवर वगैरह ले जाता है।
जुआरी का विश्वास तो कोई मूर्ख भी नहीं करता है। वह दूसरे के धन की अति तीव्र, तृष्णा के वश होकर कुदेवों की बोली भी बोलता है, मिथ्या धर्म का सेवन भी करता है, संतोष, शील, निराकुलता को जलांजलि दे देता है। अतिलोभ के परिणाम से बुद्धि विपरीत हो जाती है। उसमें परमार्थ का ज्ञान नहीं होता है। धर्म का विश्वास उसे स्वप्न में भी नहीं होता है।
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समस्त पापों का मूल कारण जुआ है ऐसा जानकर उसका दूर से ही त्याग कर दो। जुआरी की बुद्धि करोड़ो उपाय करने पर भी विपरीतता नहीं छोड़ती है। वह परलोक में दुर्गति ही पाता है जुआरी तो तीव्र लोभ से अपने आत्मा का ही घात करता है ।
कितने ही अज्ञानी जुआ में हारजीत धन की तो नहीं करते हैं, परन्तु मनुष्य जन्म को व्यर्थ ही व्यतीत करने की इच्छा से धन से तो जुआ नहीं खेलते, खेल के लिये चौपड़, शतरंज, गंजफा इत्यादि अनेक मूर्खता के कार्य करते हैं। इन खेलों में हारजीत मे भी राग-द्वेष की बड़ी तीव्रता है, हर्ष-विषाद बहुत होता है, कपट बहुत करते हैं, पिता-पुत्र भी आपस में विसंवाद, कलह करने लग जाते हैं । हारजीत से परिणामों में बड़ी तीव्रता आ जाती है ।
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