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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार पाप के उपकरण घर में ही नहीं रखो। घर में रखा देखते ही ये हिंसा के उपकरण परिणाम बिगाड़ देते हैं।
निंद्य व्यापार भी महापाप के कारण हैं, उनमें कितना ही लाभ होता हो तो भी पाप से डरकर त्याग कर देना चाहिये। लोहा, नील, मैंन, नमक, क्षार, लकड़ी, साजी, सन, साबुन, लाख, चमड़ा, ऊन, केश, कसूंभा, गुड़, खांड, अन्न, चावल, सिंघाड़ा, शस्त्र, दारू , बारूद, गोला, शीसा, आयुध, लहसुन, कांदा, अदरख, जमीकंद तथा घी, तेल, आम, नीबू, इत्यादि वनस्पतिकाय, भांग, तमाखू, जर्दा, बीड़ी, तिली, खली, काकड़ा, पिंजरा, फांसी, गांजा, चरस, शराब, दासी, दास, घोड़ा, ऊँट, बैल, भैंसा, गाड़ा, गाड़ी ( बस, मोटर, ट्रक), ईंट इनके बेचने खरीदने में संग्रह करने में महाहिंसा होती है इसलिये इनका व्यापार छोड़ ही देना चाहिये। सभी का त्याग नहीं बन सके तो इनमें महापाप जानकर किसी अनाज आदि में थोड़ा संग्रह थोड़ी मात्रा में करना विचारकर, अन्य सभी का तो त्याग ही कर देना चाहिये।
कितनी ही खोटी आजीविकाएं महापाप का बंध कराके दुर्गति में ले जाने वाली हैं, उन्हें तो छोड़ ही देना चाहिये - जैसे कोटवार बनना, कोतवाल का सहायक बनना, वनकटी कराना, गड़ा-गाड़ी (ट्रक, मोटर, बस, ट्रेक्टर, ट्राली) किराये पर देना, चलाना, ऊँट, बैल, घोड़ा किराये पर देना, ऊँट, बैल, गाड़ा-गाड़ी भाड़े पर देने की दलाली की जीविकाएं। दलाल यह नहीं देखता है कि इसका कंधा छिल गया है, नाक फट-गल गई हैं, पीठ छिल गई है, और दुख रहे हैं, किसी अंग में कीड़े पड़ गये हैं, वृद्ध है, रोगी हैं; भाड़ा की दलालीवालों के ऐसा विचार नहीं होता है। चातुर्मास बरसात में भी बहुत बोझ लदवा देते हैं। इनकी भाड़ा की आजीविका तथा भाड़ा की दलाली दोनों कार्य ही महापाप रूप हैं।
लोभ के वश होकर वृद्ध पुरुष का ब्याह-सगाई मत कराओ। राजा का हासिल (टेक्स) मत चुराओ। अन्य अपराधी की चुगली खाने की (शिकायत), झूठी गवाही देने की, गवाह बन जाने की, वैद्यपना की आजीविका नहीं करो। तंत्र, मंत्र, भूत, भूतणी, डाकिनी के इलाज करने की, रसायनादि धूर्तता दिखाकर ठग लेने की आजीविका नहीं करो। ये सब दुर्गति को ले जाने वाली हैं। ___ लकड़ी बेचने वाला , मदिरा बेचने वाला, दलाल, कसाई, धोबी, चमार, ईंट-चूना पकाने वाला, नीलगर, जुआरी, घसियारा, घास खोदनेवाला इनको ब्याज पर धन मत दो। मांसभक्षियों को, वेश्याओं को, निंद्य पाप की आजीविका करनेवालों को ब्याज पर रुपया मत दो। इनको अपना मकान किराये पर मत दो।
अपध्यान त्याग : अशुभ परिणाम के धारक कुमार्गी, मांसभक्षी, मद्यपायी, वेश्या में आसक्त, परस्त्री-लम्पट, अधर्मी जीवों से मित्रता प्रीति करने का भी त्याग करो। दूसरे के धन-लक्ष्मी में वांछा नहीं करो। अन्य की लक्ष्मी को देखकर आश्चर्य मत करो। अपना दीनपना मत चिन्तवन
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