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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १२८] [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार यहाँ उत्तम कुल में जिनेन्द्र का उपदेश, अतिदुर्लभ उत्तम जिनधर्म प्राप्त हो गया है, तो अब बिना प्रयोजन के पाप बंध से भयभीत होकर दूर रहना ही उचित हे। पशुओं के समान वृथा जन्म व्यतीत मत करो। यदि आप स्वयं पाप से नहीं छूट पा रहे हो तो दूसरे को ऐसे पाप का उपदेश तो नहीं दो। गृह सम्पत्ति बनवाने में महाहिंसा होती है, अतः मकान बनवाने का , मकान की पुताई कराने का , मकान की मरम्मत कराने का, बाग-बगीचा बनवाने का, रोड़ी खुदवाने का, सड़क-गली रास्ता खुदवाने का, कुआ-बावड़ी बनवाने का, तालाब खुदवाने का , जल का निकास बनाने का, तालाब की पाल बन्धवाने का, तालाब की पाल फुड़वाने का, नदी की पाल बन्धवाने का, बने हुए मकान को गिराने का , बाग-बगीचा मिटाने का, वृक्ष कटवाने का, जंगल कटवाने का, कोयला बनवाने का, घास खुदवाने का, आग लगाने का, मिथ्यादेवों के मकान बनाने का , मिथ्यादेवों के मंदिर तथा मूर्ति को बिगाड़ने का, खेती करने का, सुन्दर मकान को मलिन करने का उपदेश कभी नहीं देना चाहिये। तिर्यंचों के दुःख होने का, मारने का , दृढ़ बांधने का, बाधी करने का, डाह देने का, नासिका फोड़ने का उपदेश मत दो। मनुष्य तिर्यंचों के भोजन पानी रोकने का, बंदीगृह में धरने का संतानों से अलग कर देने का पक्षियों को पिंजरे में धरने का: सर्प बिच्छ सिंह, व्याघ्र , चूहा, नेवला, कुत्ता आदि हिंसक जीवों के मारने का जुआं-लीखें मारने का , उटकण-खटमल मारने का, खाट को धूप में रखने का , छिड़काव कराने का , जीवों को पकड़ने-मारने के यन्त्र-जाल आदि बनवाने का उपदेश मत दो। खोटे पापरूप शास्त्र पढ़ने का , जिन शास्त्रों में श्रृंगार, मायाचार आदि की अधिकता हो उनका; मिथ्याश्रद्धान करानेवाले, जिनग्रंथों में मारणक्रिया, विष बनाने की क्रिया, मारणउच्चाटन, वशीकरण मन्त्र, तन्त्रादि तथा इन्द्रजाल आदि अनेक कपट करने का उपदेश दिया हो; तथा रसों को गर्म करना, जलाना, रसायन बनाने इत्यादि पाप के शास्त्र, वीर रस के शास्त्र, हिंसा प्रधान क्रिया के शास्त्र मत पढ़ो, और न दूसरों को उपदेश दो।। अभक्ष्य भक्षण करने का, रात्रि में भोजन करने का, झूठ बोलने का, चुगली करने का, चोरी करने का, खोटी गवाही देने का, व्यभिचार कराने का, व्यवहार आदि बड़े-बड़े आरम्भ करने का, रोशनी प्रज्वलित करने का, बारूद छुड़वाने का, तथा बाग-बगीचा देखने की प्रेरणा करने का उपदेश मत दो। हिंसा के उपदेश का त्याग :- इस देश से दूसरे देश में व्यापार अधिक हैं, वहाँ जाकर व्यापार करो-ऐसा उपदेश नहीं दो। परिणामों में दुर्ध्यान को बढ़ाने के कारण जो मेलाप्रदर्शनी, ख्याल , कौतुक, व्यभिचार आदि कार्य (सिनेमा, टी.वी.) मनुष्य-तिर्यंचों की लड़ाई , कलह आदि देखने का उपदेश नहीं दो। युद्ध आदि करने का, गाली देने का, दूसरे की आजीविका बिगाड़ देने का उपदेश नहीं दो, खोटे गीत, गान, नृत्य, वादित्र, कलह, विसंवाद सुनने का उपदेश नहीं दो। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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