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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
१२६]
अब पापोपदेश नाम का अनर्थदण्ड कहनेवाला श्लोक कहते हैं :
तिर्यक्क्लेशवणिज्याहिंसारम्भप्रलम्भनादीनाम् ।।
प्रसवः कथाप्रसंगः स्मर्तव्यः पाप उपदेशः ।।७६ ।। अर्थ :- तिर्यंचों को क्लेश उत्पन्न कराने का, उन्हें खरीदने-बेचने का, उनकी हिंसा का, आरम्भ का, ठगने का इत्यादि पाप उत्पन्न करानेवाली प्रवृत्तिरूप कथा का बारम्बार कहना-उपदेश देना वह पापोपदेश नाम का अनर्थदण्ड है।
भावार्थ :- तिर्यंचों को मारने का, डाहने-दागने का, दृढ़ बांधने का , मर्म स्थान में पीड़ा पहुँचाने का, बहुत लादने का, बाधी करने (नपुंसक बनाना) का, नाक छेदने का, पकड़ने का, पिंजरा में रोक रखने का उपदेश देना वह तिर्यक्क्ले श नाम का पापोपदेश है। अनेक वस्तुओं में पाप उत्पन्न करानेवाले व्यवसाय का उपदेश देना तथा जिसमें छह काय के जीवों की हिंसा होती है वह हिंसापोदेश है। बाग-बगीचा लगवाना, मकानादि बनवाना, विवाह करना आदि पाप के आरम्भ का उपदेश वह आरम्भोपदेश है। छल-कपटरूप प्रवृत्ति कराने का उपदेश वह प्रलंभनोपदेश है। इसी तरह अनेक प्रकार के पापों में प्रवृत्ति करानेरूप उपदेश की कथा करना, पापों में प्रेरित करना वह सब पापोपदेश नाम का अनर्थदण्ड है। अब हिंसादान नाम का अनर्थदण्ड कहनेवाला श्लोक कहते हैं :
परशुकृपाणखनित्रज्वलनायुधश्रृंगिश्रृखलादीनाम् ।
वधहेतूनां दानं हिंसादानं ब्रुवन्ति बुधाः ।।७७।। अर्थ :- हिंसा के कारण जो फरसा, तलवार, कुदाली, गेंती, अग्नि, आयुध, आग्नेयास्त्र , विष, बेड़ी, साकंल इत्यादि के दान को सभी ज्ञानी हिंसादान अनर्थदण्ड कहते हैं। जिनसे हिंसा ही उत्पन्न होती है ऐसी वस्तु अन्य को देना, फावड़ा, कुदाल, खुरपा, कुशि, हथौड़ा, तलवार, छुरी, कटारी, तमंचा, भाला, बाण, धनुष, बन्दूक, तोप, बारूद गोला, गोली, चाबुक, दांतला, दंतीला, बेड़ी, सांकल, जहर, अग्नि इत्यादि वस्तुओं का दान करना, मांगने पर उधार देना, बेचना, किराये से देना वह सब हिंसादान नाम का अनर्थदण्ड है। अब अपध्यान नाम का अनर्थदण्ड कहनेवाला श्लोक कहते हैं :
वधबन्धच्छेदादेद्वेषाद्रागाच्च परकलत्रादे : ।
आध्यानमपध्यानं शासति जिनशासने विशदाः ।।७८।। अर्थ :- जो द्वेष से, बैर से, अपना स्वार्थ सिद्ध करने के रागरूप अभिप्राय से दूसरे की स्त्री-पुरुष आदि के वध, बंधन, मारण, छेदन, आदि का चितवन करता है उसे जो जिनशासन में प्रवीण हैं वे अपध्यान नाम का अनर्थदण्ड कहते हैं।
भावार्थ :- जिसके रागद्वेषपूर्वक परिणामों में ऐसा विचार होता है कि – अमुक का पुत्र मर जाये, स्त्री मर जाये, दण्ड हो जाये, हाथ-नाक-कान छेद दिये जांय, धन लुट जाये, आजीविका नष्ट
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