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अर्थ :- जो स्थूल असत्य स्वयं नहीं बोलता, न दुसरे से कहलाता है, तथा जिस वचन से अपने पर या दूसरे पर आपत्ति आ जावे ऐसा सत्य भी नहीं बोलता हैं, उसे संत पुरुष स्थूल झूठ का त्याग कहते हैं ।
भावार्थ :- सत्य अणुव्रत का धारी क्रोध - मान - माया - लोभ के वशीभूत होकर ऐसा वचन नहीं बोलता जिससे अन्य का घात हो जाये, अपवाद हो जाये, कलंक लग जाये क्योंकि वही तो निंद्य वचन है।
जिस वचन से मिथ्या श्रद्धान हो जाये, धर्म से छूट जाये, व्रत - संयम - त्याग में शिथिल हो जाये, श्रद्धान बिगड़ जाये, ऐसे वचन नहीं कहता है । जिस वचन से कलह - विसंवाद पैदा हो जाये, विषयों में अनुराग बढ़ जाये, बहुत आरम्भ में प्रवृत्ति हो जाये, दूसरे को आर्तध्यान हो जाये, काम वेदना प्रकट हो जाये, दूसरे के लाभ में अंतराय हो जाये, दूसरे की जीविका बिगड़ जाये, अपना तथा दूसरे का अपयश हो जाये ऐसे निंद्य वचन सत्याणुव्रती को कहना योग्य नहीं है ।
ऐसा सत्य वचन भी नहीं कहे जिससे अपना व दूसरे का बिगाड़ हो जाये, आपत्ति आ जाये, अनर्थ पैदा हो जाये, दुःख पैदा हो जाये, मर्म छिद जाये, राजा से दण्ड हो जाये, धन की हानि हो जाये। ऐसे सत्य वचन भी झूठ ही है । गाली के वचन, भण्ड वचन, नीच कुलवालों के बोलने के वचन, मर्मच्छेदी वचन, पर के अपमान के वचन, तिरस्कार के वचन अहंकार के वचनों को कभी नहीं कहना चाहिये ।
जिनसूत्र के अनुकूल, अपने पद के हितरुप, बहुत प्रलाप रहित, प्रामाणिक, संतोष उत्पन्न करनेवाले, धर्म का प्रकाश फैलानेवाले वचन कहना चाहिये; जिनसे न्यायरुप आजीविका सधे, अनीति रहित होय, ऐसे वचनों को कहनेवाले गृहस्थ के स्थूल असत्य का त्यागरुप दूसरा अणुव्रत होता है ।
अब सत्याणुव्रत के पांच अतिचार कहनेवाला श्लोक कहते हैं :
परिवादरहोभ्याख्या पैशून्यं कूटलेखकरणं च ।
न्यासापहारितापि च व्यतिक्रमाः पञ्च सत्यस्य ।। ५६ ।।
अर्थ :- यहाँ परिवाद का अर्थ मिथ्या उपदेश देना है। जो चारित्र स्वर्ग व मोक्ष का कारण है, उस चारित्र के संबंध में अन्यथा उपदेश देना वह परिवाद नाम का अतिचार है । १ ।
किसी ने अपनी कोई गुप्त बात बताई हो, वह बात किसी तीसरे से कह देना-विख्यात कर देना, तथा किसी स्त्री या पुरुष की एकांत की गुप्त चेष्टा देखकर या गुप्त वचन सुनकर किसी अन्य से कह देना- प्रकट कर देना वह रहोभ्याख्यान नाम का अतिचार है । २ ।
किसी की कोई कमजोरी जानकर उसका बिगाड़ कराने के अभिप्राय से किसी को छिपकर कह देना, चुगली करदेना, वह पैशून्य नाम का अतिचार है । ३ ।
किसी को बिना स्पष्ट कहे तथा बिना आचरण किये, बिना समझाये ही झूठा लिख देना कि इसने ऐसा कहा है, ऐसा आचरण किया है वह कूटलेखकरण नाम का अतिचार है ।४।
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