________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
७४]
व्रतरहित अव्रत-सम्यग्दृष्टि को नीचे लिखी इकतालीस कर्म प्रकृतियों का तो बंध ही नहीं होता है, ऐसा नियम है - मिथ्यात्व १, हुंडक संस्थान २, नंपुसक वेद ३, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन ४, एकेंद्रिय ५, स्थावर ६, आतप ७, सूक्ष्मपना ८, अपर्याप्तक ९, दो इंद्रिय १०, तीन इंद्रिय ११, चतुरिंद्रिय १२, साधारण १३, नरकगति १४ , नरक गत्यानुपूर्वी १५, नरक आयु १६ – ये सोलह प्रकृतियाँ तो मिथ्यात्व भाव से ही बंधती हैं -
अनन्तानुबंधी के प्रभाव से बंधनेवाली पच्चीस प्रकृतियाँ और हैं – अनन्तानुबंधी क्रोध १, मान २, माया ३, लोभ ४, स्त्यान गृद्धि ५, निद्रानिद्रा ६, प्रचलाप्रचला ६, दुर्भग ८, दुस्वर ९, अनादेय १०, न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान ११, स्वाति संस्थान १२, कुब्जक संस्थान १३, वामन संस्थान १४, वज्रवृषभ नाराच संहनन १५, नाराच संहनन १६, अर्द्ध नाराच संहनन १८, कीलित संहनन १८, अप्रशस्त विहायोगति १९, स्त्रीवेद २०, नीच गोत्र २१, तिर्यंच गति २२, तिर्यंच गत्यानुपूर्वी २३, तिर्यंच आयु २४ , उद्योत २५।
इन इकतालीस कर्म प्रकृतियों का बंध मिथ्यादृष्टि ही करता है – सम्यग्दृष्टि को मिथ्यात्व व अनन्तानुबंधी का अभाव हुआ है, इसलिये अव्रत - सम्यग्दृष्टि इन इकतालीस कर्म प्रकृतियों का नया बंध नहीं होता है -
जब सम्यक्त्व नहीं हुआ था, उस समय मिथ्यात्व अवस्था में इन इकतालीस प्रकृतियों का जो बंध हुआ था, सम्यक्त्व के प्रभाव से वह बंध नष्ट हो जाता है, परन्तु आयु संबंधी बंध नष्ट नहीं होता (छूटता) है तो भी सम्यक्त्व का ऐसा प्रभाव है - १. यदि पहले सातवें नरक की आयु का बंध किया हो, पश्चात् सम्यग्दर्शन हो जाय तो
पहले नरक ही जाता है, दूसरे या अन्य नरकों में नहीं जाता है। २. यदि पहले तिर्यंच में निगोद की एकेन्द्रिय की आयु का बंध किया हो, पश्चात्
सम्यग्दर्शन हो जाय तो सम्यक्त्व के प्रभाव से उत्तम भोगभूमि का पंचेन्द्रिय तिर्यंच ही
होता है, एकेन्द्रिय आदि कर्मभूमि का तिर्यंच नहीं होता है। ३. यदि पहले लब्धि अपर्याप्त मनुष्य की आयु का बंध किया हो, पश्चात् सम्यग्दर्शन हो
जाय तो सम्यक्त्व के प्रभाव से उत्तम भोगभूमि का मनुष्य ही होता है। ४. यदि पहले व्यन्तर आदि में नीचदेव की आय का बंध किया हो. पश्चात सम्यग्दर्शन हो
जाय तो कल्पवासी महान ऋद्धिवाला देव ही होता है, अन्य भवनत्रिक देवों में, चारों प्रकार के देवों की स्त्रियों में, मनुष्याणी स्त्री में तथा मादा तिर्यंचणी में उत्पन्न नहीं होता है। सम्यक्त्व का ऐसा प्रभाव है कि नीच कुल में, दरिद्रियों में व अल्प आयु का धारक भी नहीं होता है। अब सम्यग्दर्शन के प्रभाव से कैसा मनुष्य होता है ? यह कहनेवाला श्लोक कहते हैं :
ओजस्तेजो-विद्या-वीर्य-वृद्धि-विजय-सनाथाः ।। महाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूताः ।।३६ ।।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com