________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
प्रदान की है। इस विद्यालय के माध्यम से २५ छात्रों के भोजन, निवास, शिक्षण आदि का पूरा खर्च कायमी रूप से ट्रस्ट निरंतर देता रहेगा। इन छात्रों के माध्यम से वीतरागी तत्व के प्रचार प्रसार का कार्य भविष्य में भी निरंतर चलता रहेगा । इसी भावना से विद्यालय का संस्थापन ट्रस्ट ने किया है। “ माँ जिनवाणी सदा जीवंत रहे जयवंत रहें ” ट्रस्ट का यही दृढ संकल्प एवं उद्देश्य है ।
5
आ. कुंदकुंद शिक्षण संस्थान ट्रस्ट, बम्बई की स्थापना ट्रस्ट संस्थापक श्री पूनमचंद जी लुहाड़िया द्वारा बम्बई में ४ वर्ष पूर्व “ आचार्य कुंदकुंद शिक्षण संस्थान ट्रस्ट स्थापित किया गया है। यह संस्थान प्रतिभाशाली विद्वानों को आर्थिक स्वावलम्बन देते हुए उन्हें उचित सन्मान देने तथा उनका अभिनंदन करके वीतराग जिनेन्द्र प्रभु द्वारा प्रतिपादित महान कल्याणकारी तत्व के विश्वव्यापी प्रचार हेतु सुविधा प्रदान करने के लिए संकल्पित है। संस्थान का सौभाग्य है कि इसे जैन तीर्थो की अनवरत सेवा के लिए सम्पूर्ण रूप से समर्पित कर्मठ सेवाभावी कार्यकर्ता श्री बसन्त भाई एम दोशी बम्बई का संस्थान के मेनेजिंग ट्रस्टी के रूप में मार्गदर्शन एवं सक्रिय सहयोग प्राप्त है। उदीयमान प्रतिभाशाली जैन विद्वानों को भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतो ' तत्व प्रचारार्थ प्रेषित करने सम्बन्धी गतिविधि द्वारा धर्म प्रभावना का ट्रस्ट का उद्देश्य साकार रूप लेता जा रहा है ।
अन्य जनोपयोगी योजनाएँ
सार्वजनिक सेवा के लिए समर्पित जनोपयोगी चिकित्सा संस्था श्री जैन औषधालय अजमेर तथा श्री दिगम्बर जैन औषधालय कोटा को क्रमशः प्रतिमाह २०००) दो हजार रुपये का आर्थिक अनुदान ट्रस्ट द्वारा नियमित रूप से दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त समय समय पर नेत्र, दंत, शल्य, चक्षु आदि सम्बन्धी चिकित्सा शिविरों के संयोजन में ट्रस्ट निरंतर आर्थिक सहयोग प्रदान करता रहा है।
असहाय दीन बंधुओ को विभिन्न रूप में आर्थिक सहायता प्रदान कर ट्रस्ट मानव कल्याण के पवित्र मार्ग की ओर भी जागरूक रहता हुआ निरंतर अग्रसर है।
वीतराग जिनेन्द्र भगवंतों की महान कल्याणकारी वाणी का सारे देश में अधिक से अधिक प्रचार प्रसार हो ट्रस्ट का यही उद्देश्य है। इस दिशा में समाज द्वारा प्राप्त सभी रचनात्मक सुझावों का ट्रस्ट सदैव स्वागत करेगा। ट्रस्ट सभी मुमुक्षु आत्मार्थियों की आत्मोन्नति हेतु निरंतर प्रयत्नशील है तथा रहेगा ।
श्री रत्नकरंड श्रावकाचार - चतुर्थ संस्करण का प्रकाशन
जैन वांगमय के महान मनीषी तार्किक चूड़ामणि परम पूज्य आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी की अनुपम रचना ग्रंथराज रत्नकरंड श्रावकाचार के चतुर्थ संस्करण प्रकाशन पर ट्रस्ट अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहा है। चरणानुयोग के शास्त्रों में यह सर्वाधिक ख्याति प्राप्त प्राचीन, अलौकिक सर्वमान्य श्रावकाचार निरूपक महान ग्रंथ है। इस ग्रंथ में महा मनीषी विद्वान श्री पं॰ सदासुखदास जी ने श्रेष्ठ तत्वज्ञान समन्वित शुद्ध जैनाचार का बहुत मार्मिक ढंग से निरूपण किया है । निश्चय व्यवहार की सामंजस्यमय कथन शैली तथा आचार संहिता का अदभुत सुमेल आज के धार्मिक वातावरण को सही मोड़ देने हेतु बहुत सामयिक तथा उपयोगी है। यह पं॰ सदासुखदास जी के
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com