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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 6 पवित्र आदर्श जीवन की अनवरत साधना एवं माँ जिनवाणी के प्रति उनकी अटूट भक्ति एवं समर्पण की पुनीत भावना का द्योतक है। ढूंढारी भाषा में लिखित उनकी टीका के हिन्दी अनुवाद की समाज की चतुर्मुखी मांग को देखते हुए जिनवाणी सेवक श्री मन्नूलालजी जैन वकील सागर ने लगभग एक वर्ष तक पूर्ण परिश्रम करके ढूंढारी भाषा का हिन्दी अनुवाद तैयार किया। दि॰ जैन धर्मानुरागी समाज एवं अजमेर ट्रस्ट उनका हार्दिक आभार मानता है। इस महान ग्रंथ के पिछले तीन संस्करण अब तक प्रकाशिक हो चुके है और इसकी २०,००० (बीस हजार) प्रतियां देश के कोने-कोने में स्वाध्याय हेतु पहुंच चुकी है और अब इसके चतुर्थ संस्करण का प्रकाशन लोकर्पित किया जा रहा है। ट्रस्ट का दृढ़ संकल्प है कि यह कल्याणकारी ग्रंथ भविष्य में भी आवश्यकतानुसार निरंतर प्रकाशित होता रहे । अर्न्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान श्री डा. हुकमचंद जी भारिल्ल जयपुर ने इसकी सुंदर प्रस्तावना लिखकर ट्रस्ट को जो उल्लेखनीय सहयोग प्रदान किया, ट्रस्ट हृदय से उनका आभार प्रकट करता है। इस संस्करण की कीमत कम करने हेतु जिनवाणी भक्तों ने उदार हृदय से अपना आर्थिक सहयोग प्रदान किया उनके इस सहयोग के फलस्वरूप ही यह ग्रंथ लागत से भी कम मूल्य में उपलब्ध हो रहा है। दातारों की विवरण पत्रिका अन्यत्र प्रकाशित है। ट्रस्ट उन सभी का आभारी है। इस प्रकाशन में श्रीमान मोतीचंद जी रत्न प्रभा लुहाड़िया जोधपुर एवं उनके परिवार, श्रीमान् प्रदीप कुमार जी, कुसुम देवी चौधरी मदनगंज-किशनगढ़, श्री छोटे लाल जी, निदेश कुमार जी पाण्डे बम्बई, श्री विमल कुमार जैन (नीरू केमिकल्स, दिल्ली) एवं श्री बाबूलाल तोताराम जैन लुहाड़िया परिवार, भुसावल द्वारा प्रदत्त विशेष आर्थिक अनुदान के लिए ट्रस्ट अनुग्रहीत है। सभी तत्वानुरागी बंधुओं से अनुरोध है कि इस महान रचना का आद्योपांत एवं नियमित स्वाध्याय कर दुर्लभता से प्राप्त अपने मानव जीवन को आत्मकल्याण की ओर अग्रसर करें । माँ जिनवाणी का घर घर में प्रचार हो । विश्व के प्रत्येक प्राणी का जीवन सुखमय हो इन्ही मांगलिक भावना के साथ यह चतुर्थ संस्करण प्रकाशित करते हुए ट्रस्ट अत्यंत हर्षित 1 सितम्बर २००० विनीत : हीराचन्द बोहरा मंत्री अजमेर श्री वीतराग विज्ञान स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, 頭頭頭 Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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