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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अजीव अधिकार ६० ( उपेन्द्रवजा) अचेतने पुद्गलकायकेऽस्मिन् सचेतने वा परमात्मतत्त्वे। न रोषभावो न च रागभावो भवेदियं शुद्धदशा यतीनाम्।। ४५ ।। गमणणिमित्तं धम्ममधम्मं ठिदि जीवपोग्गलाणं च। अवगहणं आयासं जीवादीसव्वदव्वाणं।। ३० ।। गमननिमित्तो धर्मोऽधर्मः स्थितेः जीवपुद्गलानां च। अवगाहनस्याकाशं जीवादिसर्वद्रव्याणाम्।। ३० ।। धर्माधर्माकाशानां संक्षेपोक्तिरियम्। अयं धर्मास्तिकायः स्वयं गतिक्रियारहितः दीर्घिकोदकवत्। स्वभावगतिक्रियापरिणतस्यायोगिनः पंचह्रस्वाक्षरोच्चारणमात्रस्थितस्य भगवतः सिद्धनामधेययोग्यस्य [ श्लोकार्थ:-] ( शुद्ध दशावाले यतियोंको) इस अचेतन पुद्गलकायमें द्वेषभाव नहीं होता या सचेतन परमात्मतत्त्वमें रागभाव नहीं होता ;--ऐसी शुद्ध दशा यतियोंकी होती है। ४५। गाथा ३० अन्वयार्थ:-[धर्मः] धर्म [ जीवपुद्गलानां] जीवपुद्गलोंको [ गमननिमितः ] गमनका निमित्त है [च ] और [ अधर्मः ] अधर्म [ स्थिते: ] ( उन्हें ) स्थितिका निमित्त है; [ आकाशं] आकाश [ जीवादिसर्वद्रव्याणाम् ] जीवादि सर्व द्रव्योंको [ अवगाहनस्य ] अवगाहनका निमित्त टीका:-यह, धर्म-अधर्म-आकाशका संक्षिप्त कथन है। यह धर्मास्तिकाय, बावड़ीके पानी की भाँति, स्वयं गतिक्रियारहित है। मात्र (अ, इ, उ, ऋ, ल-ऐसे ) पाँच ह्रस्व अक्षरोंके उच्चारण जितनी जिनकी स्थिति है, जो ‘सिद्ध' नामके योग्य हैं, जो जीव, पुद्गल गमन-स्थितिमें हेतु धर्म-अधर्म है। आकाश जो सब द्रव्यका अवकाशहेतुक द्रव्य है।।३०।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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