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अजीव अधिकार
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पुद्गलपर्यायस्वरूपाख्यानमेतत्।
परमाणुपर्यायः पुद्गलस्य शुद्धपर्यायः परमपारिणामिकभावलक्षण: वस्तुगतषट्प्रकार हानिवृद्धिरूपः अतिसूक्ष्मः अर्थपर्यायात्मक: सादिसनिधनोऽपि परद्रव्यनिरपेक्षत्वाच्छुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मकः। अथवा हि एकस्मिन् समयेऽप्युत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वात्सूक्ष्मऋजुसूत्रनयात्मकः। स्कन्धपर्याय: स्वजातीयबन्धलक्षणलक्षितत्वादशुद्ध इति।
( मालिनी) परपरिणतिदूरे शुद्धपर्यायरूपे सति न च परमाणो: स्कन्धपर्यायशब्दः। भगवति जिननाथे पंचबाणस्य वार्ता न च भवति यथेयं सोऽपि नित्यं तथैव।। ४२ ।।
पोग्गलदव्वं उच्चइ परमाणू णिच्छएण इदरेण। पोग्गलदव्वो त्ति पुणो ववदेसो होदि खंधस्स।। २९ ।।
टीका:-यह, पुद्गलपर्यायके स्वरूपका कथन है।
परमाणुपर्याय पुद्गलकी शुद्धपर्याय है-कि जो परमपारिणामिकभावस्वरूप है, वस्तुमें होने वाली छह प्रकारकी हानिवृद्धिरूप है, अतिसूक्ष्म है, अर्थपर्यायात्मक है और सादि-सान्त होने पर भी परद्रव्यसे निरपेक्ष होनके कारण शुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मक है अथवा एक समयमें भी उत्पादव्यघ्रौव्यात्मक होनेसे सूक्ष्मऋजुसूत्रनयात्मक है।
स्कंधपर्याय स्वजातीय बंधरूप लक्षणसे लक्षित होनेके कारण अशुद्ध है। [अब टीकाकार मुनिराज २८ वी गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए श्लोक कहते हैं:]
[ श्लोकार्थ:-] [ परमाणु] परपरिणतिसे दूर शुद्धपर्यायरूप होनेसे परमाणुको स्कंधपर्यायरूप शब्द नहीं होता जिसप्रकार भगवान जिननाथमें कामदेवकी वार्ता नहीं होती, उसीप्रकार परमाणु भी सदा अशब्द ही होता है (अर्थात् परमाणुको भी कभी शब्द नहीं होता। ४२।
'परमाणु पुद्गल द्रव्य है' यह कथन निश्चयनय करे। व्यवहारनय की रीति है, वह स्कन्धको पुद्गल कहे।। २९ ।।
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