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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जीव अधिकार २५ (मालिनी) अथ सकलजिनोक्तज्ञानभेदं प्रबुद्धा परिहृतपरभावः स्वस्वरूपे स्थितो यः। सपदि विशति यत्तच्चिच्चमत्कारमात्रं स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः।। १७ ।। केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावणाणं ति। सण्णाणिदरवियप्पे विहावणाणं हवे दुविहं।। ११ ।। [भावार्थ:-चैतन्यानुविधायी परिणाम वह उपयोग है। उपयोग दो प्रकारका है : (१) ज्ञानोपयोग और (२) दर्शनोपयोग। ज्ञानोपयोगके भी दो प्रकार हैं : (१) स्वभावज्ञानोपयोग और (२) विभावज्ञानोपयोग। स्वभावज्ञानोपयोग भी दो प्रकारका है : (१) कार्यस्वभावज्ञानोपयोग (अर्थात् केवलज्ञानोपयोग) और (२) कारणस्वभावज्ञानोपयोग ( अर्थात् सहजज्ञानोपयोग)। विभावज्ञानोपयोग भी दो प्रकारका है : (१) सम्यक् विभावज्ञानोपयोग और (२) मिथ्या विभावज्ञानोपयोग (अर्थात् केवल विभावज्ञानोपयोग)। सम्यक् विभावज्ञानोपयोगके चार भेद (सुमतिज्ञानोपयोग, सुश्रुतज्ञानोपयोग, सुअवधिज्ञानोपयोग और मनःपर्ययज्ञानोपयोग) अब अगली दो गाथाओंमें कहेंगे। मिथ्या विभावज्ञानोपयोगके अर्थात् केवल विभावज्ञानोपयोगके तीन भेद हैं : (१) कुमतिज्ञानोपयोग, (२) कुश्रुतज्ञानोपयोग और (३) विभङ्गज्ञानोपयोग अर्थात् कुअवधिज्ञानोपयोग।] [ अब दसवीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं :] [ श्लोकार्थ:- ] जिनेंद्रकथित समस्त ज्ञानके भेदोंको जानकर जो पुरुष परभावोंका परिहार करके निज स्वरूपमें रहते हुए शीघ्र चैतन्यचमत्कारमात्र तत्त्वमें प्रविष्ट हो जाता है-गहरा उतर जाता है, वह पुरुष परमश्रीरूपी कामिनीका वल्लभ होता है (अर्थात् मुक्तिसुंदरीका पति होता है)। १७। * सहजज्ञानोपयोग परमपारिणामिकभासे स्थित है तथा त्रिकाल उपाधि रहित है; उसमें से ( सर्वको जाननेवाले) केवलज्ञानोपयोग प्रगट होता है। इसलिये सहजज्ञानोपयोग कारण है और केवलज्ञानोपयोग कार्य है। ऐसा होनेसे सहजज्ञानोपयोगको कारणस्वभावज्ञानोपयोग कहा जाता है और केवलज्ञानोपयोगको कार्यस्वभावज्ञानोपयोग कहा जाता है। इन्द्रिय-रहित , असहाय, केवल वह स्वभाविक ज्ञान है। दो विधि विभाविक-ज्ञान सम्यक् और मिथ्याज्ञान है। ११ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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