________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
जीव अधिकार
१५
तथा चोक्तं श्रीविद्यानंदस्वामिभिः
(मालिनी) "अभिमतफलसिद्धेरभ्युपायः सुबोध: स च भवति सुशास्त्रात्तस्य चोत्पत्तिराप्तात्। इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धः न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति।"
तथाहि
(मालिनी) शतमखशतपूज्यः प्राज्यसद्बोधराज्य: स्मरतिरसुरनाथ: प्रास्तदुष्टाघयूथः। पदनतवनमाली भव्यपद्मांशुमाली
दिशतु शमनिशं नो नेमिरानन्दभूमिः।। १३ ।। और श्री विद्यानंदिस्वामीने (श्लोक द्वारा) कहा है कि:---
“[ श्लोकार्थ:-] इष्ट फलकी सिद्धिका उपाय सुबोध है ( अर्थात् मुक्तिकी प्राप्तिका उपाय सम्यग्ज्ञान है), सुबोध सुशास्त्रसे होता है, सुशास्त्रकी उत्पत्ति आप्तसे होती है; इसलिये उनके प्रसादके कारण आप्त पुरुष बुधजनों द्वारा पूजनेयोग्य है (अर्थात् मुक्ति सर्वज्ञदेवकी कृपाका फल होनेसे सर्वज्ञदेव ज्ञानियों द्वारा पूजनीय है), क्योंकि किये हुए उपकारको साधु पुरुष ( सज्जन) भूलते नहीं हैं।"
और (छठवीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक द्वारा सर्वज्ञ भगवान श्री नेमिनाथकी स्तुति करते हैं):---
[श्लोकार्थ:-] जो सौ इंद्रोसे पूज्य हैं, जिनका सद्बोधरूपी ( सम्यग्ज्ञानरूपी) राज्य विशाल है, कामविजयी (लौकांतिक) देवोंके जो नाथ हैं, दुष्ट पापोंके समूहका जिन्होंने नाश किया है, श्री कृष्ण जिनके चरणोंमें नमें हैं, भव्यकमलके जो सूर्य हैं (अर्थात् भव्योंरूपी कमलोंको विकसित करनेमेंजो सूर्य समान हैं), वे आनंदभूमि नेमिनाथ (-आनंदके स्थानरूप नेमिनाथ भगवान) हमें शाश्वत सुख प्रदान करें। १३ ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com