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नियमसार
दर्शनावरणीयकर्मोदयेन प्रत्यस्त- मितज्ञानज्योतिरेव निद्रा । इष्टवियोगेषु विक्लवभाव एवोद्वेगः। एभिर्महादोषैर्व्याप्तास्त्रयो लोकाः । एतैर्विनिर्मुक्तो वीतरागसर्वज्ञ इति ।
तथा चोक्तम्
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' सो धम्मो जत्थ दया सो वि तवो विसयणिग्गहो जत्थ। दसअट्ठदोसरहिओ सो देवो णत्थि संदेहो ।।
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(१७) दर्शनावरणीय कर्मके उदयसे जिसमें ज्ञानज्योति अस्त हो जाती है वही निद्रा है। (१८) इष्टके वियोग में विक्लवभाव ( घबराहट ) ही उद्वेग है । - - इन ( अठारह ) महा दोषोंसे तीनलोक व्याप्त हैं । वीतराग सर्वज्ञ इन दोषोंसे विमुक्त हैं।
[ वीतराग सर्वज्ञको द्रव्य-भाव घातिकर्मोका अभाव होनेसे उन्हें भय, रोष, राग, मोह, शुभाशुभ चिंता, खेद, मद, रति, विस्मय, निद्रा तथा उद्वेग कहाँ से होंगे ?
और समुद्र जितने सातावेदनीयकर्मोदयके मध्य बिंदु जितना असाता - देवनीयकर्मोदय वर्तता है वह, मोहनीयकर्मके बिल्कुल अभावमें लेशमात्र भी क्षुधा या तृषाका निमित्त कहाँसे होगा ? नहीं होगा; क्योंकि चाहे जितना असातावेदनीयकर्म वर्तता हो तथापि मोहनीयकर्मके अभावमें दुःखकी वृत्ति नहीं हो सकती, तो फिर यहाँ तो जहाँ अनंतगुने सातावेदनीयकर्म के मध्य अल्पमात्र (–अविद्यमान जैसा) असातावेदनीयकर्म वर्तता है वहाँ क्षुधा - तृषाकी वृत्ति कहाँ से होगी? क्षुधा तृषाके सद्भावमें अनंत सुख, अनंत वीर्य आदि कहाँसे संभव होंगे ? इसप्रकार वीतराग सर्वज्ञको क्षुधा ( तथा तृषा ) न होनेसे उन्हें कवलाहार भी नहीं होता । कवलाहार के बिना भी उनके ( अन्य मनुष्योंको असंभवित ऐसे ), सुगंधित, सुरसयुक्त, सप्तधातुरहित परमौदारिक शरीररूप नोकर्माहारके योग्य, सूक्ष्म पुद्गल प्रतिक्षण आते हैं और इसलिये शरीरस्थिति रहती है।
और पवित्रताका तथा पुण्यका ऐसा संबंध होता है अर्थात् घातिकर्मोंका अभावको और शेष रहे अघातिकर्मोंका ऐसा सहज संबंध होता है कि वीतराग सर्वज्ञको उन शेष रहे अघातिकर्मोके फलरूप परमौदारिक शरीरमें जरा, रोग तथा स्वेद नहीं होते।
और केवली भगवानको भवांतरमें उत्पत्तिके निमित्तभूत शुभाशुभ भाव न होनेसे उन्हें जन्म नहीं होता; और जिसे देहवियोगके पश्चात् भवांतरप्राप्तिरूप जन्म नहीं होता उस देहवियोगको मरण नहीं कहा जाता ।
[ इसप्रकार वीतराग सर्वज्ञ अठारह दोष रहित हैं । ]
इसप्रकार ( अन्य शास्त्रोंमें गाथा द्वारा ) कहा है कि :
“[ गाथार्थ:-] वह धर्म है जहाँ दया है, वह तप है जहाँ विषयोंका निग्रह है, वह देव है जो अठारह दोष रहित है; इस संबंध में संशय नहीं है । "
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