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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परम-आलोचना अधिकार २०६ वरणांतरायमोहनीयवेदनीयायुर्नामगोत्राभिधानानि हि द्रव्यकर्माणि। कर्मोपाधिनिरपेक्षसत्ताग्राहकशुद्धनिश्चयद्रव्यार्थिकनयापेक्षया हि एभिर्नोकर्मभिर्द्रव्यकर्मभिश्च निर्मुक्तम्। मतिज्ञानादयो विभावगुणा नरनारकादिव्यंजनपर्यायाश्चैव विभावपर्यायाः। सहभुवो गुणा: क्रमभाविनः पर्यायाश्च। एभिः समस्तै: व्यतिरिक्तं, स्वभावगुणपर्यायैः संयुक्तं, त्रिकालनिरावरणनिरंजनपरमात्मानं त्रिगुप्तिगुप्तपरमसमाधिना यः परमश्रमणो नित्यमनुष्ठानसमये वचनरचनाप्रपंचपराङ्मुखः सन् ध्यायति, तस्य भावश्रमणस्य सततं निश्चयालोचना भवतीति। तथा चोक्तं श्रीमदमृतचंद्रसूरिभिः (आर्या) 'मोहविलासविजूंभितमिदमुदयत्कर्म सकलमालोच्य। आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते।।'' दर्शनावरण, अंतराय, मोहनीय, वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र नामके द्रव्यकर्म हैं। *कर्मोपाधिनिरपेक्ष सत्ताग्राहक शुद्धनिश्चयद्रव्यार्थिकनयको अपेक्षासे परमात्मा इन नोकर्मों और द्रव्यकर्मोंसे रहित है। मतिज्ञानादिक वे विभावगुण हैं और नर-नारकादि व्यंजनपर्यायें ही विभावपर्यायें हैं; गुण सहभावी होते हैं और पर्यायें क्रमभावी होती हैं। परमात्मा इन सबसे (-विभावगुणों तथा विभावपर्यायोंसे ) व्यतिरिक्त है। उपरोक्त नोकर्मों और द्रव्यकर्मोंसे रहित तथा उपरोक्त समस्त विभावगुणपर्यायोंसे व्यतिरिक्त तथा स्वभावगुणपर्यायोंसे संयुक्त, त्रिकाल-निरावरण निरंजन परमात्माको त्रिगुप्ति गुप्त (-तीन गुप्ति द्वारा गुप्त ऐसी) परमसमाधि द्वारा जो परम श्रमण सदा अनुष्ठानसमयमें वचनरचनाके प्रपंचसे ( –विस्तारसे) पराङ्मुख वर्तता हुआ ध्याता है, उस भावश्रमणको सतत निश्चय-आलोचना हैं। इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचंद्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति नामकी टीकामें २२७ वें श्लोक द्वारा) कहा है कि : " [ श्लोकार्थ:-] मोहके विलाससे फैला हुआ जो यह उदयमान (-उदयमें आनेवाला) कर्म उस समस्तको आलोचकर (-उन सर्व कर्मोकी आलोचना करके), मैं निष्कर्म ( अर्थात् सर्व कर्मोंसे रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामें आत्मासे ही (-स्वयंसे ही) निरंतर वर्तता हूँ।” *शुद्धनिश्चयद्रव्यार्थिकनय कर्मोपाधिकी अपेक्षा रहित सत्ताको ही ग्रहण करता है। Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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