________________
Version 001: remember to check
http://www.AtmaDharma.com for updates निश्चय - प्रत्याख्यान अधिकार
(पृथ्वी) प्रणष्टदुरितोत्करं प्रहतपुण्यकर्मव्रजं प्रधूतमदनादिकं प्रबलबोधसौधालयम्। प्रणामकृततत्त्ववित् प्रकरणप्रणाशात्मकं प्रवृद्धगुणमंदिरं प्रहृतमोहरात्रिं नुमः।। १५१ ।।
२०४
इति
सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमलधारिदेवविरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृतौ निश्चयप्रत्याख्यानाधिकारः षष्ठः श्रुतस्कन्धः।।
[ श्लोकार्थ :- ] जिसने पापकी राशिको नष्ट किया है, जिसने पुण्यकर्मके समूहको हना है, जिसने मदन ( - काम) आदि को खिरा दिया है, जो प्रबल ज्ञानका महल है, जिससे तत्त्ववेत्ता प्रणाम करते हैं, जो प्रकरणके नाशस्वरूप है ( अर्थात् जिसे कोई कार्य करना शेष नहीं है-जो कृतकृत्य है), जो पुष्ट गुणोंका धाम है तथा जिसने मोहरात्रिका नाश किया है, उसे ( - उस सहज तत्त्वको ) हम नमस्कार करते हैं । १५१ ।
इसप्रकार, सुकविजनरूपी कमलोंके लिये जो सूर्य समान है और पाँच इंद्रियोंके विस्तार रहित देहमात्र जिन्हें परिग्रह था ऐसे श्री पद्मप्रभमलधारिदेव द्वारा रचित नियमसारकी तात्पर्यवृत्ति नामक टीकामें ( अर्थात् श्रीमद्भगवत् - कुंदकुंदाचार्य देवप्रणीत श्री नियमसार परमागमकी निर्ग्रथ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवविरचित तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें ) निश्चय - प्रत्याख्यान अधिकार नामका छठवाँ श्रुतस्कंध समाप्त हुआ ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com