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नियमसार
१२९
स्त्रीराजचौरभक्तकथादिवचनस्य पापहेतोः। परिहारो वाग्गुप्तिरलीकादिनिवृत्तिवचनं वा।।६७ ।।
इह वाग्गुप्तिस्वरूपमुक्तम्।
अतिप्रवृद्धकामैः कामुकजनैः स्त्रीणां संयोगविप्रलंभजनितविविधवचनरचना कर्तव्या श्रोतव्या च सैव स्त्रीकथा। राज्ञां युद्धहेतूपन्यासो राजकथाप्रपंचः। चौराणां चौरप्रयोगकथनं चौरकथाविधानम्।
__ अतिप्रवृद्धभोजनप्रीत्या विचित्रमंडकावलीखंडदधिखंडसिताशनपानप्रशंसा भक्तकथा। आसामपि कथानां परिहारो वाग्गुप्तिः। अलीकनिवृत्तिश्च वाग्गुप्तिः। अन्येषां अप्रशस्तवचसां निवृत्तिरेव वा वाग्गुप्तिः इति।
तथा चोक्तं श्रीपूज्यपादस्वामिभि:
गाथा ६७ अन्वयार्थ:-[पापहेतोः ] पापकें हेतुभूत ऐसे [स्त्रीराजचौरभक्तकथादि-वचनस्य ] स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भक्तकथा इत्यादिरूप वचनोंका [परिहारः] परिहार [ वा] अथवा [ अलीकादिनिवृतिवचनं ] असत्यादिककी निवृत्तिवाले वचन [ वाग्गुप्तिः ] वह वचनगुप्ति
है
टीका:-यहाँ वचनगुप्तिका स्वरूप कहा हैं।
जिन्हें काम अति वृद्धिको प्राप्त हुआ हो ऐसे कामी जनों द्वारा की जानेवाली और सुनी जानेवाली ऐसी जो स्त्रियोंकी संयोगवियोगजनित विविध वचनरचना (स्त्रियों संबंधी बात) वही स्त्रीकथा है; राजाओंका युद्धहेतुक कथन ( अर्थात् राजाओं द्वारा किये जानेवाले युद्धादिक कथन) वह राजकथाप्रपंच है; चोरोंका चोरप्रयोगकथन वह चोरकथाविधान है (अर्थात् चोरों द्वारा किये जानेवाले चोरीके प्रयोगोंकी बात वह चोरकथा है); अति वृद्धिको प्राप्त भोजनकी प्रीति द्वारा मैदाकी पूरी और शक्कर, दहीं-शक्कर, मिसरी इत्यादि अनेक प्रकारके अशन-पानकी प्रशंसा वह भक्तकथा (भोजनकथा) है। इन समस्त कथाओंका परिहार सो वचनगुप्ति है। असत्यकी निवृत्ति भी वचनगुप्ति है। अथवा ( असत्य उपरांत) अन्य अप्रशस्त वचनोंकी निवृत्ति वही वचनगुप्ति है।
इसप्रकार (आचार्यवर) श्री पूज्यपादस्वामीने (समाधितंत्रमें १७ वें श्लोक द्वारा) कहा है कि:
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