________________
१२५
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
नियमसार
पासुगभूमिपदेसे गूढे रहिए परोपरोहेण । उच्चारादिचागो पइट्ठासमिदी हवे तस्स ।। ६५ ।।
प्रासुकभूमिप्रदेशे गूढे रहिते परोपरोधेन । उच्चारादित्यागः प्रतिष्ठासमितिर्भवेत्तस्य ।। ६५ ।।
मुनीनां कायमलादित्यागस्थानशुद्धिकथनमिदम्।
शुद्धनिश्चयतो जीवस्य देहाभावान्न चान्नग्रहणपरिणतिः । व्यवहारतो देहः विद्यते; तस्यैव हि देहे सति ह्याहारग्रहणं भवति; आहारग्रहणान्मलमूत्रादयः संभवन्त्येव । अत एव संयमिनां मलमूत्रविसर्गस्थानं निर्जन्तुकं परेषामुपरोधेन विरहितम् । तत्र स्थाने शरीरधर्मं कृत्वा पश्चात्तस्मात्स्थानादुत्तरेण कतिचित् पदानि गत्वा ह्युदङ्मुखः स्थित्वा चोत्सृज्य कायकर्माणि संसारकारणं
जिसे तू परमश्रीरूपी कामिनीका प्रिय कान्त होगा ( अर्थात् मुक्तिलक्ष्मीका वरण करेगा ) ।
८७ ।
गाथा ६५
अन्वयार्थः-[ परोपरोधेन रहिते ] जिसे परके उपरोध रहित ( - दूसरेसे रोका न जाये ऐसे), [ गूढे] गूढ़ और [ प्रासुकभूमिप्रदेशे ] प्रासुक भूमिप्रदेशमें [ उच्चारादित्यागः ] मलादिका त्याग हो, [ तस्य ] उसे [ प्रतिष्ठासमितिः ] प्रतिष्ठापन समिति [ भवेत् ] होती है।
टीका:-यह, मुनियोंको कायमलादित्यागके स्थानकी शुद्धिका कथन है।
शुद्धनिश्चयसे जीवको देहका अभाव होनेसे अन्नग्रहणरूप परिणति नहीं है । व्यवहारसे (जीवको) देह है; इसलिये उसीको देह होनेसे आहारग्रहण है; आहारग्रहणके कारण मलमूत्रादिक संभवित हैं ही। इसीलिये संयमियोंको मलमूत्रादिकके उत्सर्गका (-त्यागका) स्थान जंतुरहित तथा परके उपरोध रहित होता है । उस स्थानपर शरीरधर्म करके फिर जो परमसंयमी उस स्थानसे उत्तर दिशामें कुछ डग जाकर उत्तरमुख खड़े रहकर, कायकर्मोंका ( - शरीरकी क्रियायोंका ), संसारके कारणभूत हों
गूढ़ प्रासु और पर- उपरोध बिन भू पर यती मल त्याग करते हैं उन्हें समिति प्रतिष्ठापन कही ।। ६५ ।।
▬▬▬
Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com