________________
१२१
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
नियमसार
संचारागोचरं प्रासुकमित्यभिहितम्; प्रतिग्रहोच्चस्थानपादक्षालनार्चनप्रणामयोगशुद्धिभिक्षाशुद्धिनामधेयैर्नवविधपुण्यैः प्रतिपत्तिं कृत्वा श्रद्धाशक्त्यलुब्धताभक्तिज्ञानदयाक्षमाऽभिधानसप्तगुणसमाहितेन शुद्धेन योग्याचारेणोपासकेन दत्तं भक्तं भुंजानः तिष्ठति यः परमतपोधनः तस्यैषणासमितिर्भवति । इति व्यवहारसमितिक्रमः । अथ निश्चयतो जीवस्याशनं नास्ति परमार्थतः, षट्प्रकारमशनं व्यवहारतः संसारिणामेव भवति।
तथा चोक्तं समयसारे ( ? )
&&
णोकम्मकम्महारो लेप्पाहारो य कवलमाहारो । उज्ज मणो वि य कमसो आहारो छव्विहो यो ।।
""
संचारको अगोचर वह प्रासुक (अन्न) - ऐसा ( शास्त्रमें ) कहा है। *प्रतिग्रह, उच्च स्थान, पादप्रक्षालन, अर्चन, प्रणाम, योगशुद्धि ( मन-वचन - कायाकी शुद्धि) और भिक्षाशुद्धि-इस नवविध पुण्यसे (नवधा भक्तिसे) आदर करके, श्रद्धा, शक्ति, अलुब्धता, भक्ति, ज्ञान, दया और क्षमा-इन (दाताके) सात गुणों सहित शुद्ध योग्य - आचारवाले उपासक द्वारा दिया गया (नव कोटिरूपसे शुद्ध, प्रशस्त और प्रासुक) भोजन जो परम तपोधन लेते हैं, उन्हें एषणासमिति होती है। ऐसा व्यवहारसमितिका क्रम है।
अब निश्चयसे ऐसा है कि-जीवको परमार्थसे अशन नहीं है; छह प्रकारका अशन व्यवहारसे संसारियोंको ही होता है।
1
इसीप्रकार कहा है कि:
“[ गाथार्थः-] नोकर्म-आहार, कर्म-आहार, लेप-आहार, ओज - आहार और मन - आहार - ऐसा आहार क्रमश: छह प्रकारका आहार जानना।
कवल - आहार,
66
"
* प्रतिग्रह = आहारजल शुद्ध है, तिष्ठ तिष्ठ तिष्ठ, ( - ठहरिय, ठहरिये, ठहरिये ) " ऐसा कहकर आहारग्रहणकी प्रार्थनाकरना; कृपा करनेके लिये प्रार्थना; आदरसन्मान। [ इसप्रकार प्रतिग्रह किया जाने पर मुनि कृपा करके ठहर जायें तो दाताके सात गुणोंसे युक्त श्रावक उन्हें अपने घरमें लें जाकर, उच्च आसन पर विराजमान करके, पाँव धोकर, पूजन करता है और प्रणाम करता है । फिर मन-वचन - कायाकी शुद्धिपूर्वक शुद्ध भिक्षा देता है । ]
Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com