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________________ १९३ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार पुंवेदोदयाभिधाननोकषायतीव्रोदयेन अथवा लक्षणशुभपरिणामेन च ब्रह्मचर्यव्रतं भवति इति । संजातमैथुनसंज्ञापरित्याग ( मालिनी ) भवति तनुविभूतिः कामिनीनां विभूतिं स्मरसि मनसि कामिंस्त्वं तदा मद्वचः किम् । सहजपरमतत्त्वं स्वस्वरूपं विहाय व्रजसि विपुलमोहं हेतुना केन चित्रम् ।। ७९ ।। सव्वेसिं गंथाणं चागो णिरवेक्खभावणापुव्वं । पंचमवदमिदि भणिदं चारित्तभरं वहंतस्स ।। ६० ।। सर्वेषां ग्रन्थानां त्यागो निरपेक्षभावनापूर्वम्। पंचमव्रतमिति भणितं चारित्रभरं वहतः ।। ६० ।। अथवा पुरुषवेदोदय नामका जो नोकषायका तीव्र उदय उसके कारण उत्पन्न मैथुनसंज्ञाके परित्यागस्वरूप शुभ परिणामसे, ब्रह्मचर्यव्रत होता है। [ अब ५९ वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं: ] [ श्लोकार्थ :- ] कामिनियोंकी जो शरीरविभूति उस विभूतिका, हे कामी पुरुष ! यदि तू मनमें स्मरण करता है, तो मेरे वचनसे तुझे क्या लाभ होगा ? अहो ! आश्चर्य होता है कि सहज परमतत्त्वको - निज स्वरूपको - छोड़कर तू किस कारण विपुल मोहको प्राप्त हो रहा है ! । ७९ । गाथा ६० अन्वयार्थ:-[ निरपेक्षभावनापूर्वम् ] 'निरपेक्ष भावनापूर्वक ( अर्थात् जिस भावनामें परकी अपेक्षा नहीं ऐसी शुद्ध निरालंबन भावना सहित ] [ सर्वेषां ग्रन्थानां त्यागः] सर्व परिग्रहोंका त्याग (सर्वपरिग्रहत्यागसंबंधी शुभभाव ) १। मुनिको मुनित्वोचित निरपेक्ष शुद्ध परिणतिके साथ वर्तता हुआ जो ( हठ - रहित ) सर्वपरिग्रहत्यागसंबंधी शुभोपयोग वह व्यवहार अपरिग्रह व्रत कहलाता है । निरपेक्ष-भाव संयुक्त सब ही ग्रन्थके परित्यागका । परिणाम है व्रत पांचवां चारित्रभर वहनारका ।। ६० ।। Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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