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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शुद्धभाव अधिकार १०२ निश्चयनयबलेन हेया भवन्ति। कुतः? परस्वभावत्वात्, अत एव परद्रव्यं भवति। सकलविभावगुणपर्यायनिर्मुक्तं शुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपं स्वद्रव्यमुपादेयम्। अस्य खलु सहजज्ञानसहजदर्शनसहजचारित्रसहजपरमवीतरागसुखात्मकस्य शुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपस्याधारः सहजपरमपारिणामिकभावलक्षणकारणसमयसार इति। तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः (शार्दूलविक्रीडित) "सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्तचरितैर्मोक्षार्थिभिः सेव्यतां शुद्धं चिन्मयमेकमेव परमं ज्योतिः सदैवास्म्यहम्। एते ये तु समुल्लसन्ति विविधा भावाः पृथग्लक्षणास्तेऽहं नास्मि यतोऽत्र ते मम परद्रव्यं समग्रा अपि।।" तथा हि शुद्ध द्वारा उपादेयरूपसे कही गई थीं किन्तु शुद्धनिश्चयनयके बलसे ( शुद्धनिश्चयनयसे) वे हेय हैं। किस कारणसे ? क्योंकि वे परस्वभाव हैं, और इसलिये परद्रव्य हैं। सर्व विभावगुणपर्यायोंसे रहित शुद्ध-अंतःतत्त्वस्वरूप स्वद्रव्य उपादेय है। वास्तवमें सहजज्ञानसहजदर्शन-सहजचारित्र-सहजपरमवीतरागसुखात्मक शुद्धअंतःतत्त्वस्वरूप इस स्वद्रव्यका आधार सहजपरमपारिणामिकभावलक्षण (-सहज परम पारिणामिक भाव जिसका लक्षण है ऐसा) कारणसमयसार है। इसीप्रकार (आचार्यदेव ) श्रीमद् अमृतचंद्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति नामकी टीकामें १८५ वें श्लोक द्वारा) कहा है कि: “[ श्लोकार्थ:-] जिनके चित्तका चरित्र उदात्त (-उदार, उच्च , उज्ज्वल) है ऐसे मोक्षार्थी इस सिद्धांतका सेवन करो कि–' मैं तो शुद्ध चैतन्यमय एक परम ज्योति ही सदैव हूँ; और यह जो भिन्न लक्षणवाले विविध प्रकारके भाव प्रगट होते हैं वह मैं नहीं हूँ, क्योंकि वे सब मुझे परद्रव्य हैं।" और (इस ५० वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं] : Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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