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उपादान-निमित्तकी चिट्ठी]
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अब , चौभंगी का विचार - ज्ञानगुण निमित्त , चारित्रगुण उपादानरूप , उसका विवरण :
एक तो अशुद्ध निमित्त , अशुद्ध उपादान; दूसरा अशुद्ध निमित्त , शुद्ध उपादान; तीसरा शुद्ध निमित्त , अशुद्ध उपादान; चौथा शुद्ध निमित्त, शुद्ध उपादान।
उसका विवरण - सूक्ष्मदृष्टि देकर एक समयकी अवस्था द्रव्यकी लेना, समुच्चयरूप मिथ्यात्व-सम्यक्त्व की बात नहीं चलाना। किसी समय जीव की अवस्था इस प्रकार होती है कि जानरूप ज्ञान, विशुद्ध चारित्र; किसी समय अजानरूप ज्ञान, विशुद्ध चारित्र; किसी समय जानरूप ज्ञान, संक्लेशरूप चारित्र; किसी समय अजानरूप ज्ञान, संक्लेश चारित्र; जिस समय अजानरूप गति ज्ञान की, संक्लेशरूप गति चारित्रकी; उस समय निमित्त उपादान दोनों अशुद्ध। किसी समय अजानरूप ज्ञान, विशुद्धरूप चारित्र; उस समय अशुद्ध निमित्त, शुद्ध उपादान। किसी समय जानरूप ज्ञान, संक्लेशरूप चारित्र; उस समय शुद्ध निमित्त, अशुद्ध उपादान। किसी समय जानरूप ज्ञान, विशुद्धरूप चारित्र; उस समय शुद्ध निमित्त . शद्ध उपादान। इस प्रकार जीव की अन्य-अन्य दशा सदाकाल अनादिरूप है।
उसका विवरण - जानरूप ज्ञान की शुद्धता कही जाय, विशुद्धरूप चारित्र की शुद्धता कही जाय; अज्ञानरूप ज्ञान की अशुद्धता कही जाय, संक्लेशरूप चारित्र की अशुद्धता कही जाय।
अब उसका विचार सुनो :
मिथ्यात्व अवस्थामें किसी समय जीव का ज्ञानगुण जानरूप होता है तब क्या जानता है ? ऐसा जानता है कि लक्ष्मी, पुत्र, कलत्र इत्यादि मुझसे न्यारे हैं; प्रत्यक्ष-प्रमाण; मैं मरूँगा, ये यहाँ ही रहेंगे - ऐसा जानता है। अथवा ये जायेंगे, मैं रहूँगा, किसी काल इसमें मेरा एक दिन वियोग है, ऐसा जानपना मिथ्यादृष्टि को होता है सो तो शुद्धता कही जाय, परन्तु सम्यक् शुद्धता नहीं, गर्भित शुद्धता; जब वस्तुका स्वरूप जाने तब सम्यकशुद्धता; वह ग्रन्थिभेद के बिना नहीं होती; परन्तु गर्भित शुद्धता सो भी अकाम निर्जरा है।
उसी जीवको किसी समय ज्ञानगुण अंजानरूप है गहलरूप, उससे केवल बंध है। इसीप्रकार मिथ्यात्व-अवस्था में किसी समय चारित्रगण विशुद्धरूप है, इसलिये चारित्रावरण कर्म मन्द है. उस मन्दता से निर्जरा है। किसी समय चारित्रगण संक्लेशरूप है. इसलिये केवल तीव्रबंध है। इस प्रकार मिथ्या-अवस्था में जिस समय जानरूप ज्ञान है और विशद्धतारूप चारित्र है. उस समय निर्जरा है। जिस समय अजानरूप ज्ञान है. संक्लेशरूप चारित्र है, उस समय बंध है। उसमें विशेष इतना कि अल्प निर्जरा बहुत बंध
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