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यह चित्रके रूपमें इसप्रकार रखा जायगा :
मैं
मा
इसका अर्थ है - मैं ज्ञान और ध्यानरूपी धनमें लीन रहने वाले, काम और अभिमानसे रहित , मेघके समान धर्मोपदेशकी वर्षा करने वाले, पापरहित, क्षीणकषाय, नग्नदिगम्बर जैन साधुओंको नमस्कार करता हूँ।
ध्यान देखने पर उक्त छन्दमें अनुप्रास, यमक आदि अलंकार भी खोजे जा सकते हैं।
इसी प्रकार एक लम्बा सांगरूपक भी देखने योग्य है, जो कि मूलग्रंथ गोम्मटसारकी तुलना गिरनारसे एवं अनेक टीकाओंकी तुलना गली, मार्ग एवं वाहनसे करते हुए प्रस्तुत किया गया है :
नेमचंद जिन शुभ पद धारि, जैसे तीर्थ कियो गिरिनार । तैसें नेमीचंद मुनिराय, ग्रन्थ कियो है तरण उपाय ।। देशनिमें सुप्रसिद्ध महान, पूज्य भयो है यात्रा थान । यामैं गमन करै जो कोय, उच्चपना पावत है सोय ।। गमन करनकौं गली समान, कर्नाटक टीका अमलान । तकौं अनुसरेती शुभ भई, टीका सुन्दर संस्कृत मई ।। केशव वर्णी बुद्धि निधान, संस्कृत टीकाकार सुजान । मार्ग कियो तिहिं जुत विस्तार,जहँ स्थूलनिको भी संसार।।
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