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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परिशिष्ट २ रहस्यपूर्ण चिट्ठी [अचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी द्वारा लिखित] सिद्ध श्री मुलताननगर महा शुभस्थानमें साधर्मी भाई अनेक उपमा योग्य अध्यात्मरस रोचक भाई श्री खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धारथदासजी, अन्य सर्व साधर्मी योग्य लिखी टोडरमलके श्री प्रमुख विनय शब्द अवधारण करना। यहाँ यथासम्भव आनन्द है, तुम्हारे चिदानन्दघनके अनुभवसे सहजानन्द की वृद्धि चाहिये। अपरंच तुम्हारा एक पत्र भाईजी श्री रामसिंहजी भुवानीदासजी पर आया था। उसके समाचार जहानाबादसे मुझको अन्य साधर्मियोंने लिखे थे। सो भाईजी, ऐसे प्रश्न तुम सरीखे ही लिखें। इस वर्तमानकाल में अध्यात्मरसके रसिक बहुत थोड़े हैं। धन्य हैं जो स्वात्मानुभवकी बात भी करते हैं। वही कहा है : तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्तापि हि श्रृता । निश्चितं स भवेद्रव्यो भाविनिवार्णभाजनम् ।। -पद्मनन्दिपंचविंशतिका (एकत्वाशीतिः २३) अर्थ :- जिस जीवने प्रसन्न चित्तसे इस चेतनस्वरूप आत्मा की बात भी सुनी है, वह निश्चय से भव्य है। अल्पकालमें मोक्षका पात्र है। सो भाईजी, तुमने प्रश्न लिखे उनके उत्तर अपनी बुद्धि अनुसार कुछ लिखते हैं सो जानना और अध्यात्म आगमकी चर्चागर्भित पत्र तो शीघ्र-शीघ्र दिया करें, मिलाप तो कभी होगा तब होगा। और निरन्तर स्वरूपानुभवनका अभ्यास रखोगेजी। श्रीरस्तु। अब , स्वानुभवदशामें प्रत्यक्ष-परोक्षादिक प्रश्नोंके उत्तर स्वबुद्धि अनुसार लिखते हैं :वहाँ प्रथमही स्वानुभवका स्वरूप जानने के निमित्त लिखते हैं : जीव पदार्थ अनादिसे मिथ्यादृष्टि है। वहाँ स्व-परके यथार्थरूपसे विपरीत श्रद्धान का नाम मिथ्यात्व है। तथा जिस काल किसी जीवके दर्शनमोहके उपशम-क्षय-क्षयोपशमसे स्व-परके यथार्थ श्रद्धानरूप तत्त्वार्थश्रद्धान हो तब जीव सम्यक्त्वी होता है; इसलिये स्वपरके श्रद्धानमें शद्धात्म श्रद्धानरूप निश्चयसम्यक्त्व गर्भित है। तथा यदि स्व-परका श्रद्धान नहीं है और जिनमतमेंकहे जो देव, गुरु, धर्म उन्हीं को मानता है; व सप्ततत्त्वोंको मानता है; अन्यमतमें कहे देवादि व तत्त्वादिको नहीं मानता है; Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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