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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नौवाँ अधिकार मोक्षमार्गका स्वरूप दोहा - शिव उपाय करतें प्रथम, कारन मंगलरूप । _ विघन विनाशक सुखकरन, नमौं शुद्ध शिवभूप ।। अब, मोक्षमार्ग का स्वरूप कहते हैं। प्रथम मोक्षमार्गके प्रतिपक्षी जो मिथ्यादर्शनादिक उनका स्वरूप बतलाया - उन्हें तो दुःखरूप, दुःखका कारण जानकर, हेय मानकर उनका त्याग करना। तथा बीचमें उपदेश का स्वरूप बतलाया उसे जानकर उपदेश को यथार्थ समझना। अब, मोक्ष के मार्गजो सम्यग्दर्शनादिक उनका स्वरूप बतलाते हैं - उन्हें सुखरूप, सुखका कारण जानकर, उपादेय मानकर अंगीकार करना; क्योंकि आत्माका हित मोक्ष ही है; उसी का उपाय आत्मा का कर्तव्य है; इसलिये उसी का उपदेश यहाँ देते हैं। आत्माका हित मोक्ष ही है वहाँ आत्मा का हित मोक्ष ही है, अन्य नहीं; ऐसा निश्चय किसप्रकार होता है सो कहते हैं। आत्माके नानाप्रकार गुण- पर्यायरूप अवस्थाएँ पायी जाती है; उनमें अन्य तो कोई अवस्था हो, आत्माका कुछ बिगाड़-सुधार नहीं है; एक दुःख-सुख अवस्थासे बिगाड़-सुधार है। यहाँ कुछ हेतु-दृष्टांत नहीं चाहिये; प्रत्यक्ष ऐसा ही प्रतिभासित होता है। लोक में जितने आत्मा हैं उनके एक उपाय यह पाया जाता है कि दुःख न हो, सुख हो; तथा अन्य भी जितने उपाय करते हैं वे सब एक इसी प्रयोजन सहित करते हैं, दूसरा प्रयोजन नहीं है। जिनके निमित्तसे दुःख होता जाने उनको दूर करनेका उपाय करते हैं, और जिनके निमित्त से सुख होता जानें उनके होनेका उपाय करते हैं। तथा संकोच-विस्तार आदि अवस्था भी आत्मा के ही होती है, व अनेक परद्रव्यों का भी संयोग मिलता है; परन्तु जिनसे सुख-दुःख होता न जाने, उनके दूर करनेका व होनेका कुछ भी उपाय कोई नहीं करता। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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