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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३०४] [मोक्षमार्गप्रकाशक अनुयोगोंका अभ्यासक्रम वहाँ प्रथमानुयोगादिकका अभ्यास करना। पहले इसका अभ्यास करना , फिर इसका करना ऐसा नियम नहीं है, परन्तु अपने परिणामोंकी अवस्था देखकर जिसके अभ्याससे अपनी धर्ममें प्रवृत्ति हो उसी का अभ्यास करना। अथवा कभी किसी शास्त्रका अभ्यास करे, कभी किसी शास्त्रका अभ्यास करे। तथा जैसे - रोजनामचेमें तो अनेक रकमें जहाँ-तहाँ लिखी हैं, उनकी खातेमें ठीक खतौनी करे तो लेन-देन का निश्चय हो; उसी प्रकार शास्त्रोंमें तो अनेक प्रकार का उपदेश जहाँ-तहाँ दिया है, उसे सम्यग्ज्ञान में यथार्थ प्रयोजन सहित पहिचानेतो हित-अहित का निश्चय हो। इसलिये स्यात्पदकी सापेक्षता सहित सम्यग्ज्ञान द्वारा जो जीव जिनवचनोंमें रमते हैं, वे जीव शीघ्र ही शुद्धात्मस्वरूप को प्राप्त होते हैं। मोक्षमार्ग में पहला उपाय आगमज्ञान कहा है, आगमज्ञान बिना धर्म का साधन नहीं हो सकता, इसलिये तुम्हें भी यथार्थ बुद्धि द्वारा आगमका अभ्यास करना। तुम्हारा कल्याण होगा। - इति श्री मोक्षमार्गप्रकाशक नामक शास्त्रमें उपदेशस्वरूपप्रतिपादक आठवाँ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ।।८।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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