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प्राप्त मोक्षमार्गप्रकाशकमें नौ अधिकार हैं । प्रारम्भमें आठ अधिकार तो पूर्ण हो गए, किन्तु नौवाँ अधिकार अपूर्ण है। इस अधिकारमें जिस विषय ( सम्यग्दर्शन) उठाया गया है, उसके अनुरूप इसमें कुछ भी नहीं कहा जा सका है। सम्यदर्शन के आठ अंग और पच्चीस दोषोंके नाम मात्र गिनाए जा सके हैं। उनका सांगोपांग विवेचन नहीं हो पाया है। जहाँ विषम छूटा है वहाँ विवेच्य प्रकरण भी अधूरा रह गया है, यहाँ तक कि अंतिम पृष्ठका अंतिम शब्द 'बहुरि ' भी बहु लिखा जाकर अधूरा छूट गया है।
मोक्षमार्गप्रकाशककी हस्तलिखित मूल प्रति देखने पर यह प्रतीत हुआ कि मोक्षमार्गप्रकाशकके अधिकारोंके क्रम एवं वर्गीकरण के सम्बन्धमें पंडितजी पुनर्विचार करना चाहते थे क्योंकि तीसरे अधिकार तक तो वे अधिकार के अंत होने पर स्पष्ट रूपसे लिखते हैं कि प्रथम, द्वितीय व तृतीय अधिकार समाप्त हुआ; किन्तु चौथे अधिकारसे यह क्रम अव्यवस्थित हो गया। चौथे के अंत में लिखा है 'छठा अधिकार समाप्त हुआ' । पाँचवे अधिकारके अन्तमें कुछ लिखा व कटा हुआ है। पता नहीं चलता कि क्या लिखा हुआ है एवं वहाँ अधिकार शब्द का प्रयोग नहीं है। छठे अधिकार के अंत में छठा लिखने की जगह छोड़ी गई है। उसकी जगह ६ का अंक लिखा हुआ है। सातवें और आठवें अधिकारके अंत का विवरण स्पष्ट होने पर भी उनमें अधिकार संख्या नहीं दी गई है एवं उसके लिये स्थान छोड़ा गया है।
ग्रंथके आरम्भमें प्रथम पृष्ठ पर अधिकार नम्बर तथा नाम जैसे ‘पीठबंध प्ररूपक प्रथम अधिकार' नहीं लिखा है, जैसे की प्रथम अधिकार के अंत में लिखा है।
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ॐ नमः सिद्धं ।। अथ मोक्षमार्ग प्रकाशक नामा शास्त्र लिख्यते ।। " लिख कर मंगलाचरण आरम्भ कर दिया गया है। अन्य अधिकारोंके प्रारम्भ में भी अधिकार निर्देश व नामकरण नहीं किया गया है।
अपूर्ण नौवें अधिकारको पूर्ण करने के बाद उसके आगे और भी कई अधिकार लिखने की उनकी योजना थी । न मालूम पंडितप्रवर टोडरमलजी के मस्तिष्क में कितने अधिकार प्रच्छन्न थे ? प्राप्त नौ अधिकारोंमें लेखक ने बारह स्थानों पर ऐसे संकेत दिये हैं कि इस विषय पर आगे यथास्थान विस्तारसे प्रकाश डाला जायगा ।'
मोक्षमार्गप्रकाशक, प्रस्तुत संस्करण
(१) सो इन सबका विशेष आगे कर्म अधिकारमें लिखेंगे वहाँ से जानना । पृष्ठ ३०
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