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पंडित परमानन्द शास्त्री 'त्रिलोकसार भाषाटीका' को भी सम्यग्ज्ञानचंद्रिकामें सम्मिलित मानते ह , पर पंडित टोडरमलजीने स्पष्ट रूपसे कई स्थानों पर लिखा है कि 'सम्यग्ज्ञानचंद्रिका' गोम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, लब्धिसार और क्षपणासारकी टीका का नाम है । कहीं भी त्रिलोकसार के नाम का उल्लेख नहीं किया है। लब्धिसार-क्षपणासार सहित भाषाटीका समाप्त करते हुए लिखा है – “इति श्रीमत् लब्धिसार वा क्षपणासार सहित गोम्मटसार शास्त्रकी सम्यग्ज्ञानचंद्रिका भाषाटीका सम्पूर्ण।" अतः यह निश्चित है कि ' त्रिलोकसार भाषाटीका ' सम्यग्ज्ञानचंद्रिका का अंग नहीं है।
मोक्षमार्गप्रकाशक पंडित टोडरमलजीका एक महत्वपर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथका आधार कोई एक ग्रंथ न होकर सम्पूर्ण जैन साहित्य है। यह सम्पूर्ण जैन सिद्धान्त को अपने में समेट लेनेका एक सार्थक प्रयत्न था, पर खेद है कि यह ग्रंथराज पूर्ण न हो सका। अन्यथा यह कहनेमें संकोच न होता कि यदि सम्पूर्ण जैन वाङ्मय कहीं एक जगह सरल, सुबोध और जनभाषामें देखना हो तो मोक्षमार्गप्रकाशकको देख लीजिए। अपूर्ण होने पर भी यह अपनी अपूर्वता के लिये प्रसिद्ध है। यह एक अत्यन्त लोकप्रीय ग्रंथ है जिसके कई संस्करण निकल चुकें हैं एवं खड़ी बोली में इसके अनुवाद भी कई बार
' मोक्षमार्गप्रकाशक ( सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली), प्रस्तावना, २८
श्रीमत् लब्धिसार वा क्षपणासार सहित श्रुत गोम्मटसार । ताकी सम्यग्ज्ञानचंद्रिका भाषामय टीका विस्तार ।। प्रारंभी पूरन हुई, भये समस्त मंगलाचार ।
सफल मनोरथ भयो हमारो, पायो ज्ञानानंद अपार ।। १।। २ श्री दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर तेरापंथियान, जयपुर में उपलब्ध हस्तलिखित प्रति (वि० सं० १८५०), पृष्ठ २८५
प्रकाशक
प्रकाशन तिथि
भाषा
प्रतियाँ
ब्रजभाषा
(क) बाबू ज्ञानचंदजी जैन, लाहौर (ख) जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई (ग) बाबू पन्नालाल चौधरी, वाराणसी (घ) अनन्तकीर्ति ग्रंथमाला, बम्बई (ङ) सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली (च) सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली (छ) सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली (ज) सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली
वि० सं० १९५४
सन् १९११ ई० वी०नि० सं० २४५१ वी० नि० सं० २४६३
१००० ३००० १००० १००० ४००० १००० २३०० २२००
सन् १९६५ ई०
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