________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
सातवाँ अधिकार]
[२२५
'यह मैं हूँ, ये पर हैं; ये भाव बुरे हैं, ये भले हैं'; - इस प्रकार स्वरूपको पहिचाने उसका नाम भाव भासना है। शिवभूति मुनि जीवादिकका नाम नहीं जानते थे, और 'तुषमाषभिन्न'१ ऐसा रटने लगे। सो यह सिद्धान्त का शब्द था नहीं; परन्तु स्व-परके भावरूप ध्यान किया, इसलिये केवली हुए। और ग्यारह अंगके पाठी जीवादि तत्त्वोंके विशेष भेद जानते हैं; परन्तु भाव भासित नहीं होता, इसलिये मिथ्यादृष्टि ही रहते हैं।
अब, इसके तत्त्वश्रद्धान किस प्रकार होता है सो कहते हैं :
जीव-अजीवतत्त्वका अन्यथारूप
जिनशास्त्रोंसे जीवके त्रस-स्थावरादिरूप तथा गुणस्थान-मार्गणादिरूप भेदको जानता है, अजीवके पुद्गलादि भेदोंको तथा उनके वर्णादि विशेषोंको जानता है; परन्तु अध्यात्मशास्त्रोंमें भेदविज्ञानको कारणभूत व वीतरागदशा होनेको कारणभूत जैसा निरूपण किया है वैसा नहीं जानता।
तथा किसी प्रसंगवश उसीप्रकार जानना होजाये तब शास्त्रानुसार जान तो लेता है; परन्तु अपनेको आपरूप जानकर परका अंश भी अपने में न मिलाना और अपना अंश भी परमें न मिलाना - ऐसा सच्चा श्रद्धान नहीं करता है। जैसे अन्य मिथ्यादृष्टि निर्धार बिना पर्यायबुद्धिसे जानपनेमें व वर्णादिमें अहंबुद्धि धारण करते हैं; उसीप्रकार यह भी आत्माश्रित ज्ञानादिमें तथा शरीराश्रित उपदेश-उपवासादि क्रियाओंमें अपनत्व मानता है।
तथा कभी शास्त्रानुसार सच्ची बात भी बनाता है; परन्तु अंतरंग निर्धाररूप श्रद्धान नहीं है। इसलिये जिस प्रकार मतवाला माताको माता भी कहे तो वह सयाना नहीं है; उसी प्रकार इसे सम्यक्त्वी नहीं कहते।
तथा जैसे किसी और की ही बातें कर रहा हो, उस प्रकारसे आत्माका कथन करता है; परन्तु यह आत्मा ' मैं हूँ' - ऐसा भाव भासित नहीं होता।
तथा जैसे किसी और को औरसे भिन्न बतलाता हो, उस प्रकार आत्मा और शरीरकी भिन्नता प्ररूपित करता है; परन्तु मैं इन शरीरादिसे भिन्न हूँ - ऐसा भाव भासित नहीं होता।
तथा पर्यायमें जीव-पुद्गलके परस्पर निमित्तसे अनेक क्रियाएँ होती है, उन्हें दोनों द्रव्योंके मिलापसे उत्पन्न हुई जानता है; यह जीवकी क्रिया है उसका पुद्गल निमित्त है, यह पुद्गलकी क्रिया है उसका जीव निमित्त है- ऐसा भिन्न-भिन्न भाव भासित नहीं होता।
१ तुसमासं घोसंतो भावविसुद्धो महाणुभावो य।
णामेण य सिवभूई केवलणाणी फुडं जाओ।। भावपहुड़ ५३ ।।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com